"अकबर": अवतरणों में अंतर

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=== विवाह संबंध ===
[[चित्र:RajaRaviVarma MaharanaPratap.jpg|thumb|upright|[[महाराणा प्रताप]]]]
[[आंबेर]] के [[कछवाहा]] [[राजपूत]] राज भारमल ने अकबर के दरबार में अपने राज्य संभालने के कुछ समय बाद ही प्रवेश पाया था। इन्होंने अपनी राजकुमारी हरखा बाई का विवाह अकबर से करवाना स्वीकार किया।<ref>{{Harvnb|सरकार|१९८४|p=३६}}</ref><ref>{{Harvnb|चंद्रा|२००७|pp=२४२-२४३}}</ref> जोधाबाई विवाहोपरांतshehzade मुस्लिमSalim बनीke औरjanm ke pashchaat मरियम-उज़-ज़मानी कहलायी। उसे राजपूत परिवार ने सदा के लिये त्याग दिया और विवाह के बाद वो कभी [[आमेर]] वापस नहीं गयी। उसे विवाह के बाद [[आगरा]] या [[दिल्ली]] में कोई महत्त्वपूर्ण स्थान भी नहीं मिला था, बल्कि [[भरतपुर जिला|भरतपुर जिले]] का एक छोटा सा गांव मिला था।<ref name="नाथ 397">{{harvnb|नाथ|१९८२|p=३९७}}</ref> उसकी मृत्यु १६२३ में हुई थी। उसके पुत्र [[जहांगीर]] द्वारा उसके सम्मान में [[लाहौर]] में एक मस्जिद बनवायी गई थी।<ref>{{harvnb|नाथ|१९८२|p=५२}}</ref> भारमल को अकबर के दरबार में ऊंचा स्थान मिला था और उसके बाद उसके पुत्र भगवंत दास और पौत्र [[मानसिंह]] भी दरबार के ऊंचे सामंत बने रहे।<ref name="Chandra 243">{{Harvnb|चंद्रा|२००७|p=२४३}}</ref>
हिन्दू राजकुमारियों को मुस्लिम राजाओं से विवाह में संबंध बनाने के प्रकरण अकबर के समय से पूर्व काफी हुए थे, किन्तु अधिकांश विवाहों के बाद दोनों परिवारों के आपसी संबंध अच्छे नहीं रहे और न ही राजकुमारियां कभी वापस लौट कर घर आयीं।<ref name="Chandra 243"/><ref name="Sarkar 37">{{harvnb|सरकार|१९८४|p=३७}}</ref> हालांकि अकबर ने इस मामले को पिछले प्रकरणों से अलग रूप दिया, जहां उन रानियों के भाइयों या पिताओं को पुत्रियों या बहनों के विवाहोपरांत अकबर के मुस्लिम ससुराल वालों जैसा ही सम्मान मिला करता था, सिवाय उनके संग खाना खाने और प्रार्थना करने के। उन राजपूतों को अकबर के दरबार में अच्छे स्थान मिले थे। सभी ने उन्हें वैसे ही अपनाया था सिवाय कुछ रूढ़िवादी परिवारों को छोड़कर, जिन्होंने इसे अपमान के रूप में देखा था।<ref name="Sarkar 37"/>
अन्य राजपूर रजवाड़ों ने भी अकबर के संग वैवाहिक संबंध बनाये थे, किन्तु विवाह संबंध बनाने की कोई शर्त नहीं थी। दो प्रमुख राजपूत वंश, मेवाढ़ के शिशोदिया और रणथंभोर के हाढ़ा वंश इन संबंधों से सदा ही हटते रहे। अकबर के एक प्रसिद्ध दरबारी [[राजा मानसिंह]] ने अकबर की ओर से एक हाढ़ा राजा सुर्जन हाढ़ा के पास एक संबंध प्रस्ताव भी लेकर गये, जिसे सुर्जन सिंह ने इस शर्त पर स्वीकार्य किया कि वे अपनी किसी पुत्री का विवाह अकबर के संग नहीं करेंगे। अन्ततः कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुए किन्तु सुर्जन को गढ़-कटंग का अधिभार सौंप कर सम्मानित किया गया।<ref name="Chandra 243"/> अन्य कई राजपूत सामंतों को भी अपने राजाओं का पुत्रियों को मुगलों को विवाह के नाम पर देना अच्छा नहीं लगता था। गढ़ सिवान के राठौर कल्याणदास ने मोटा राजा राव उदयसिंह और [[जहांगीर]] को मारने की धमकी भी दी थी, क्योंकि उदयसिंह ने अपनी पुत्री जोधाबाई का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर से करने का निश्चय किया था। अकबर ने ये ज्ञान होने पर शाही फौजों को कल्याणदास पर आक्रमण हेतु भेज दिया। कल्याणदास उस सेना के संग युद्ध में काम आया और उसकी स्त्रियों ने जौहर कर लिया।<ref>{{cite book|author=[[w:Muzaffar Alam|आलम, मुज़फ़्फ़र]]; [[w:Sanjay Subrahmanyam|सुब्रह्मण्यम, संजय]]|page=१७७|title=द मुगल स्टेट, १५२६-१७५०|year=१९९८|publisher=[[ऑक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस]]|isbn=9780195639056}}</ref>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/अकबर" से प्राप्त