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देवकीनन्दन खत्री जी का जन्म 29 जून 1861 (आषाढ़ कृष्णपक्ष सप्तमी संवत् 1918) शनिवार को [[पूसा]], [[मुजफ्फ़रपुर]], [[बिहार]] में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला ईश्वरदास था। उनके पूर्वज [[पंजाब]] के निवासी थे तथा मुग़लों के राज्यकाल में ऊँचे पदों पर कार्य करते थे। महाराज [[रणजीत सिंह]] के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाला ईश्वरदास काशी में आकर बस गये। देवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा [[उर्दू-फ़ारसी]] में हुई थी। बाद में उन्होंने [[हिंदी]], [[संस्कृत]] एवं [[अंग्रेजी]] का भी अध्ययन किया।
 
आरंभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे गया के टेकारी इस्टेट पहुंच गई और वहां के राजा के यहां नौकरी कर ली. बाद में उन्होंने [[वाराणसी]] में एक प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना की और 18831900 में हिंदी मासिक 'सुदर्शन' की शुरुआत की.
 
देवकीनन्दन खत्री जी का काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह से बहुत अच्छा सम्बंध था। इस सम्बंध के आधार पर उन्होंने [[चकिया]] ([[चकिया, उत्तर प्रदेश]]) और नौगढ़ के जंगलों के ठेके लिये। देवकीनन्दन खत्री जी बचपन से ही सैर-सपाटे के बहुत शौकीन थे। इस ठेकेदारी के काम से उन्हे पर्याप्त आय होने के साथ ही साथ उनका सैर-सपाटे का शौक भी पूरा होता रहा। वे लगातार कई-कई दिनों तक चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे। कालान्तर में जब उनसे जंगलों के ठेके छिन गये तब इन्हीं जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की पृष्ठभूमि में अपनी [[तिलिस्म]] तथा [[ऐयारी]] के कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने चन्द्रकान्ता उपन्यास की रचना की।