"दृष्टांत अलंकार": अवतरणों में अंतर
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फिर शशी से ओझल हो घन।
2-भरतहिं होय न राजमद,
विधि-हरि-हर पद पाइ|
कबहुँ कि काँजी-सीकरनि,
छीर-सिन्धु बिलगाइ||
यहाँ सुख-दुःख तथा शशी-घन में बिंब प्रतिबिंब का भाव है इसलिए यहाँ दृष्टांत अलंकार है।
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