इदं की उत्पति मनुष्य के जन्म के साथ ही हो जाती है। फ्रायड इसे व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानता था। इसकी विषयवस्तु वे इच्छाएं हैं जो लिबिडो (यौन मूल प्रवृति की उर्जा ऊर्जा) से सम्बंधित हैहैं और तात्कालिक संतुष्टि चाहती है।हैं। उर्जाऊर्जा की वृद्धि इदं नहीनहीं सहन कर पाता और अगर इसे सही ढंग से अभिव्यक्ति नही मिलती तब यह विकृत स्वरुप धारण करके व्यक्ति को प्रभावित करता है। अहम् (ego) फ्रायड के लिए स्व-चेतना की तरह थी जिसे उसने मानव के व्यवहार का द्वितीयक नियामक बताया.बताया। यह इदं का संगठित भाग है, इसका उद्देश्य इदं के लक्ष्यों को आगे बढ़ाना है। परा अहम् एक प्रकार का व्यवहार प्रतिमानक होता है, जिससे नैतिक व्यवहार नियोजित होते हैं। इसका विकास अपेक्षाकृत देर से होता है। फ्रायड के व्यक्तित्व सम्बन्धी विचारों को मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत भी कहा जाता है। इसे फ्रायड ने 5 अवस्थाओं में बांटा है -