"भारतीय छन्दशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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[[छन्द]] शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। "छन्दसछन्दस्" [[वेद]] का पर्यायवाची नाम है। '''सामान्यतः वर्णों और मात्राओं की गेयव्यवस्था को छन्द कहा जाता है।''' इसी अर्थ में [[पद्य]] शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। पद्य अधिक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। भाषा में शब्द और शब्दों में वर्ण तथा स्वर रहते हैं। इन्हीं को एक निश्चित विधान से सुव्यवस्थित करने पर छन्द का नाम दिया जाता है।
 
छन्दशास्त्र इसलिये अत्यन्त पुष्ट शास्त्र माना जाता है क्योंकि वह [[गणित]] पर आधारित है। वस्तुत: देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि छंदशास्त्र की रचना इसलिये की गई जिससे अग्रिम संतति इसके नियमों के आधार पर छंदरचना कर सके। छंदशास्त्र के ग्रंथों को देखने से यह भी ज्ञात होता है कि जहाँ एक ओर आचार्य प्रस्तारादि के द्वारा छंदो को विकसित करते रहे वहीं दूसरी ओर कविगण अपनी ओर से छंदों में किंचित् परिर्वन करते हुए नवीन छंदों की सृष्टि करते रहे जिनका छंदशास्त्र के ग्रथों में कालांतर में समावेश हो गया।