"सनकादि ऋषि": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
|||
पंक्ति 33:
ब्रह्मा जी नें उन बालकों से कहा कि पुत्र जाओ सृष्टि करो।
सनकादि मुनियों नें ब्रह्मा जी से कहा "पिताश्री! क्षमा करें। हमारे हेतु यह माया तो अप्रत्यक्ष है, हम भगवान की उपासना से बड़ा किसी वस्तु को नहीं मानते अतः हम भई जाकर उन्हीं की भक्ति करेंगे।" और सनकादि मुनि वहाँ से चल पड़े। वे वहीं जाया करते हैं जहाँ परमात्मा का भजन होता है। नारद जी को इन्होंने भागवत सुनाया था तथा ये स्वयं भगवान शेष से भागवत श्रवण किये थे। ये जितने छोटे दिखते हैं उतनी ही विद्याकंज हैं। ये चारो वेदों के ही रूप कहे जा सकते हैं।<ref>[[भागवत]] </ref>
==शक्तियाँ, वाहन और देवता==
सभी [[देवता]]यो की तरह सनकादि ऋषि भी [[देवता]] थे जैसे- सनक [[भ्रमण]] (सैर) का, सन्नदन [[श्राप]] का, सनातन [[आदर]] का तथा सन्तकुमार [[तप्सया]] का देवता था। चारो के पास भी वाहन थे जैसे- सनक का वाहन [[चील]], सन्नदन का वाहन [[गिद]], सनातन का वाहन [[कोयल]] तथा सनतकुमार का वाहन [[चिड़िया]] थी।
== जय विजय को श्राप ==
|