"गिरमिटिया": अवतरणों में अंतर

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== गिरमिटियों की दुर्दशा ==
[[गुलाम]] पैसा चुकाने पर भी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकता था, लेकिन गिरमिटियों के साथ केवल इतनी बाध्यता थी कि वे पांच साल बाद छूट सकते थे। गिरमिटिये छूट तो सकते थे, लेकिन उनके पास वापस [[भारत]] लौटने को पैसे नहीं होते थे। उनके पास उसके अलावा और कोई चारा नहीं होता था कि या तो अपने ही मालिक के पास काम करें या किसी अन्य मालिक के गिरमिटिये हो जायें। वे भी बेचे जाते थे। काम न करने, कामचोरी करने पर प्रताड़ित किये जा सकते थे। आमतौर पर गिरमिटिया चाहे औरत हो या मर्द उसे विवाह करने की छूट नहीं थी। यदि कुछ गिरमिटिया विवाह करते भी थे तो भी उन पर गुलामी वाले नियम लागू होते थे। जैसे औरत किसी को बेची जा सकती थी और बच्चे किसी और को बेचे जा सकते थे। गिरमिटियों (पुरुषों) के साथ चालीस फीसदी औरतें जाती थीं, युवा औरतों को मालिक लोग रखैल बनाकर रखते थे और उनका भरपूर यौनशोषण करते थे। आकर्षण खत्म होने पर यह औरतें मज़दूरों को सौंप दी जाती थीं। गिरमिटियों की संतानें मालिकों की संपत्ति होती थीं। मालिक चाहे तो बच्चों से बड़ा होने पर अपने यहां काम करायें या दूसरों को बेच दें। गिरमिटियों को केवल जीवित रहने लायक भोजन, वस्त्रादि दिये जाते थे। इन्हें शिक्षा, मनोरंजन आदि मूलभूत ज़रूरतों से वंचित रखा जाता था। यह १२ से १८ घंटे तक प्रतिदिन कमरतोड़ मेहनत करते थे। अमानवीय परिस्थितियों में काम करते-करते सैकड़ों मज़दूर हर साल अकाल मौत मरते थे। मालिकों के जुल्म की कहीं सुनवाई नहीं थी।
 
== गिरमिटिया प्रथा के विरुद्ध तोताराम सनाढय का अभियान ==
तोताराम सनाढय का जन्म 1876 में [[हिरनगाँव]] जिला फीरोजाबाद उतर प्रदेश में हुआ था। इनको हिंदुस्तान से फिजी गिरमिटिया बनाकर ले जाया गया तोताराम सनाढय ने गिरमिट पर अपने अनुभव [[फिजी द्वीप में मेरे इक्कीस वर्ष]] पुस्तक लिखी।
 
== गिरमिटिया प्रथा के विरूद्ध महात्मा गांधी का सहयोग ==