"क्षेमेंद्र": अवतरणों में अंतर
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==काल==
इन्होंने अपने ग्रंथों के रचनाकाल का उल्लेख किया है जिससे इनके आविर्भाव के समय का परिचय हमें मिलता है। काश्मीर नरेश अनंत (1028-1063) तथा उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजा कलश (1063-1089) के राज्यकाल में क्षेमेंद्र का जीवन व्यतीत हुआ। क्षेमेंद्र के ग्रंथ [[समयमातृका]] का रचनाकाल 1050 ई. तथा इनके अंतिम ग्रंथ [[दशावतारचरित]] का निर्माण काल इनके ही लेखानुसार 1066 ई. है। फलत: एकादश शती का मध्यकल (लगभग 1025-1066) क्षेमेंद्र के आविर्भाव का, निश्चित रूप से, समय माना जा सकता है।
==रचना संसार==
क्षेंमेंद्र के पूर्वपुरूष राज्य के अमात्य पद पर प्रतिष्ठित थे। फलत: इन्होंने अपने देश की राजनीति को बड़े निकट से देखा तथा परखा। अपने युग के अशांत वातावरण से ये इतने असंतुष्ट और मर्माहत थे कि उसे सुधारने में, उसे पवित्र बनाने में तथा स्वार्थ के स्थान पर परार्थ की भावना दृढ़ करने में इन्होंने अपना जीवन लगा दिया तथा अपनी द्रुतगामिनी लेखनी को इसी की पूर्ति के निमित्त काव्य के नाना अंगों की रचना में लगाया। इनके आदर्श थे महर्षि [[वेदव्यास]] और उनके ही समान क्षेमेंद्र ने सरस, सुबोध तथा उदात्त रचनाओं से संस्कृतभारती के प्रासाद को अलंकृत किया। प्रथमत: उन्होंने प्राचीन महत्वपूर्ण महाकाव्यों के कथानकों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। '''रामायणमंजरी''', '''भारतमंजरी''' तथा '''बृहत्कथामंजरी''' - ये तीनों ही क्रमश: [[रामायण]], [[महाभारत]] तथा [[बृहत्कथा]] के अत्यंत रोचक तथा सरस संक्षेप हैं। '''बोधिसत्त्वावदानकल्पलता''' में [[महात्मा बुद्ध|बुद्ध]] के पूर्व जन्मों से संबद्ध पारमितासूची आख्यानों का पद्यबद्ध वर्णन है। '''दशावतारचरित''' इनका उदात्त [[महाकाव्य
==शैली==
क्षेमेंद्र संस्कृत में
==इन्हें भी देखें==
*[[समयमातृका]]
==बाहरी कड़ियाँ==
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