"दत्तात्रेय": अवतरणों में अंतर

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'''भगवान दत्तात्रेय''',महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे।इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है,और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है।
 
भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा,भगवान दत्तात्रेय ने कहा : "आत्मा ही मेरा गुरु है,तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।"
 
उन्होंने कहा मेरे चौबीस गुरुओं के नाम है :
 
१) पृथ्वी
 
२) जल
 
३) वायु
 
४) अग्नि
 
५) आकाश
 
६) सूर्य
 
७) चन्द्रमा
 
८) समुद्र
 
९) अजगर
 
१०) कपोत
 
११) पतंगा
 
१२) मछली
 
१३) हिरण
 
१४) हाथी
 
१५) मधुमक्खी
 
१६) शहद निकालने वाला
 
१७) कुरर पक्षी
 
१८) कुमारी कन्या
 
१९) सर्प
 
२०) बालक
 
२१) पिंगला वैश्या
 
२२) बाण बनाने वाला
 
२३) मकड़ी
 
२४) भृंगी कीट
 
'''भगवान दत्तात्रेय :-'''
 
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"जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है।" (जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य)[[चित्र:Ravi Varma-Dattatreya.jpg|250px|thumb|right|भगवान दत्तात्रेय]]
'''भगवान दत्तात्रेय''' [[त्रिमूर्ति|ब्रह्मा-विष्णु-महेश]] के अवतार माने जाते हैं।
 
भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज '''दत्तात्रेय''' में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और जल्दी से फल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं।