"गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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{{बौद्ध धर्म}}
उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच [[शाक्य]] [[गणराज्य]] की तत्कालीन राजधानी [[कपिलवस्तु]] के निकट [[लुम्बिनी]] में हुआ था, जो नेपाल में है।<ref>[http://indology.info/papers/cousins The Dating of the Historical Buddha: A Review Article]</ref>
लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया।<ref>http://hindi.webdunia.com/buddhism-religion/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A4%AE-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7-112051200047_1.htm</ref> गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। क्षत्रिय राजा [[शुद्धोधन]] उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता [[मायादेवी]] जो [[कोली]] वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- ''बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा।<ref name="mrsp.mcgill.ca">[http://mrsp.mcgill.ca/reports/pdfs/Wesak.pdf]</ref>'' शुद्दोधन ने पांचवें दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। सभी ने एक सी दोहरी भविष्यवाणी की, कि बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र आदमी बनेगा।<ref name="mrsp.mcgill.ca"/> दक्षिण मध्य [[नेपाल]] में स्थित लुंबिनी में उस स्थल पर महाराज [[अशोक]] ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व बुद्ध के जन्म की स्मृति में एक स्तम्भ बनवाया था। बुद्ध का जन्म दिवस व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है।<ref name="mrsp.mcgill.ca"/>
सुद्धार्थ का मन वचपन से ही करुणा और दया का स्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है।
घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुँह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देता और जीती हुई बाजी हार जाता।