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[[चित्र:Pakistan Khyber Pass IMG 9928.jpg|thumb|200px|ख़ैबर दर्रा]]
'''ख़ैबर दर्रा''' या '''दर्र-ए-ख़ैबर''' (<small>{{Nastaliq|ur|درۂ خیبر}}, Khyber Pass</small>) उत्तर-पश्चिमी [[पाकिस्तान]] की सीमा और [[अफगानिस्तान]] के [[काबुलिस्तान मैदान]] के बीच [[हिंदुकुश]] के [[सफेद कोह]] पर्वत शृंखला में स्थित एक प्रख्यात ऐतिहासिक [[दर्रा]] है। यह दर्रा ५० किमी लंबा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल १० फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग ६०० से १००० फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है। इस दर्रे के ज़रिये [[भारतीय उपमहाद्वीप]] और [[मध्य एशिया]] के बीच आया-जाया सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। ख़ैबर दर्रे का सबसे ऊँचा स्थान पाकिस्तान के [[संघ-शासितसंघीय जनजातीयप्रशासित कबायली क्षेत्र]] की लंडी कोतल (<small>{{Nastaliq|ur|}}لنڈی کوتل, Landi Kotal</small>) नामक बस्ती के पास पड़ता है। इस दर्रे के इर्द-गिर्द [[पश्तून लोग]] बसते हैं।
 
[[पेशावर]] से [[काबुल]] तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई [[जमरूद]] से, जो अंग्रेजी सेना की छावनी थी और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे [[शादीबगियार]] के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है और यहीं से खैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है फिर बाई और [[शंगाई का पठार|शंगाई के पठार]] की ओर उठती है। इस स्थान से [[अली मसजिद दुर्ग]] दिखाई पड़ता है जो दर्रे के लगभग बीचोबीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं खैबर दर्रे का सँकरा भाग है जो केवल पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में २,००० फुट है। ५ किमी आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ [[मीनार|मीनारें]] है। इसके आगे [[लोआर्गी का पठार]] आता है जो १० किमी लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह [[लंदी कोतल]] में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंगरेजों के काल का एक [[दुर्ग]] है। यहाँ से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई [[काबुल नदी]] को चूमती [[डक्का]] पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटरगाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदी खाना तक, जिसे खैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना १९२५ में आरंभ हुआ था।