"भारत-संयुक्त राष्ट्र संघ सम्बन्ध": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Prime Minister Narendra Modi addressesat the 69th session of the UN Generalgeneral Assemblyassembly.jpg|अंगूठाकार|भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी संयुक्त राष्ट्र सभा को सम्बोधित करते हुए।]]
[[भारत]] ने संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों का लगातार समर्थन किया है तथा विशेष रूप से शांति स्थापना के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लक्ष्यों को कार्यान्वित करने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दिया है। संयुक्त राष्ट्र के भूतपूर्व महासचिव [[कोफी अन्नान]] के अनुसार पिछले दशकों में भारत ने अपनी सरकार के प्रयासों तथा भारतीय विद्वानों, सैनिकों एवं अंतरराष्ट्रीय सिविल कर्मचारियों के काम के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संध में प्रचुर योगदान किया है। भारत विकासशील देशों की ओर से संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा को आकार देने में इसकी सहायता करने में सबसे प्रखर आवाजों में से एक रहा है और इसके सशस्त्र बलों का अनुभव एवं व्यावसायिकता बार-बार संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना से संबंधित अभियानों में अमूल्य साबित हुआ है। विगत् वर्षों में भारत ने संयुक्त राष्ट्र को ऐसे मंच के रूप में देखा है जो अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के गारंटर के रूप में भूमिका निभा सकता है। वर्तमान में भारत ने विकास एवं गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, जलदस्युता, निःशस्त्रीकरण, मानवाधिकार, शांति निर्माण एवं शांति स्थापना की बहुपक्षीय वैश्विक चुनौतियों की भावना में संघर्ष करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है।
भारत ने हमेशा से ही संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी आवाज मजबूती के साथ उठायी है। भारत ने [[गुट-निरपेक्ष आंदोलन]] तथा विकासशील देशों का समूह 77 का गठन किया जिन्होंने अधिक साम्यपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनितिक व्यवस्था के लिए संयुक्त राष्ट्र के अन्दर दलील प्रस्तुत की। संयुक्त राष्ट चार्टर के अनुच्छेद 53 में इस