"अहीरवाल": अवतरणों में अंतर

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अगला राजा हीरा सिंह भी नकारा था और राज काज का नियंत्रण एक स्थानीय व्यवसायी जौकी राम ने हथिया लिया था। दिल्ली के एक बागी सरदार नजफ़ कुली खान ने गोकुलगढ़ किले पर कब्जा जमा लिया था। दिल्ली के सम्राट शाह आलम द्वितीय ने बेगम समरू के साथ मिलकर उसे दंडित करने की ठान ली। 12 मार्च 1788 को, भाड़ावास में शाह आलम ने डेरा डेरा जमाया व रात के समय नजफ़ कुली पर हमला बोल दिया जिसमें नजफ़ कुली को भरी नुकसान पहुँचा। बेगम समरू के तोपखाने के असर से कुली खान समझौते के लिए मजबूर हो गया।<ref name="Mahendergarh1"/>
 
जौकी राम की प्रभुता पूरे राज्य के लिए असहनीय थी। तब रेवाड़ी के राव के एक रिश्तेदार तेज़ सिंह जो कि तौरु के शासक थे, राव राम सिंह कि माता के अनुरोध पर सामने आए। उन्होंने रेवाड़ी पर हमला किया व जौकी राम को मौत के घाट उतार दिया और खुद की सत्ता स्थापित की।<ref name="Mahendergarh1"/><ref name="S. D. S. Yadava2">{{cite book | url=http://books.google.com/?id=p69GMA226bgC&pg=PA52&dq=ahir+ruler+chief#v=onepage&q=ahir%20ruler%20chief&f=false | title=Followers of Krishna: Yadavas of India | publisher=Lancer Publishers | author=S. D. S. Yadava | year=2006 | pages=52,53,54 | isbn=9788170622161}}</ref>
 
राव तेज सिंह ने साल 1803 में पटपड़गंज के युद्ध में सिंधिया का साथ दिया था. बाद में, 1803 में तेज सिंह व उनका सम्पूर्ण राज्य ब्रिटिश हुकूमत ने अपने कब्जे में ले लिया और तेज़ सिंह के पास मात्र 58 गाँव ही शेष बचे। 1823 में उनकी मौत के बाद उनकी सम्पत्ति उनके तीन पुत्रों पूरन सिंह, नाथु राम व जवाहर सिंह के हाथों में आयी। जवाहर सिंह के कोई संतान नहीं थी। पूरन सिंह व नाथु राम के बाद उनके राज्य के उत्तराधिकारी उनके पुत्र तुलाराम व गोपालदेव बने।<ref name="Mahendergarh1"/>
 
===राव तुलाराम सिंह===