"भागीदारी": अवतरणों में अंतर

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'''भागीदारी''' या '''साझेदारी''' (partnership) [[व्यवसाय|व्यावसायिक]] [[संगठन]] का एक स्वरूप है। यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों का पारस्परिक संबंध है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से एक व्यावसायिक उद्यम का गठन किया जाता है। वे व्यक्ति जो एक साथ मिलकर व्यवसाय करते है, उन्हें व्यक्तिगत रूप से ‘साझेदारी’ (पार्टनरशिप) और सामूहिक रूप से ‘फर्म’ कहा जाता है। जिस नाम से व्यवसाय किया जाता है उसे ‘फर्म का नाम’ कहते हैं। सुलतान एंड कंपनी, रामलाल एंड कंपनी, गुप्ता एंड कंपनी आदि कुछ फर्मों के नाम हैं।
 
साझेदारी फर्म, [[भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932|भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932]] के प्रावधनों के अंतर्गत नियंत्रित होती है। भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धरा 4 के अनुसार साझेदारी उन व्यक्तियों का आपसी संबंध है, जो उन सबके द्वारा या उन सबकी ओर से किसी एक साझेदार द्वारा संचालित व्यवसाय का लाभ आपस में बांटने के लिए सहमत होते हैं।
 
चूंकि [[एकल स्वामित्व]] व्यवसायिक संगठन की कुछ सीमाएं होती हैं; इसके वित्तीय और प्रबंधकीय संसाधन बहुत सीमित होते हैं तथा एक निश्चित सीमा से आगे इस व्यवसाय का विस्तार करना भी संभव नहीं है। एकल स्वामित्व व्यावसायिक संगठन की इन्हीं सीमाओं से निपटने के लिए साझेदारी व्यवसाय अस्तित्व में आया है।
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* '''दो या अधिक सदस्य''' : साझेदारी व्यवसाय के लिए कम से कम दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। परंतु बैंकिंग व्यवसाय में यह संख्या 10 से और साधारण व्यवसाय में 20 से अधिक नहीं होनी चाहिए।
 
* '''अनुबंध''' : जब भी आप साझेदारी व्यवसाय शुरू करने के लिए दूसरों को साथ लेते हैं तो आप सबके बीच समझौता या अनुबंध होना जरूरी है। इसमेंसमझौते के विलेख (deed) में निम्नलिखित बातें सम्मिलित होती हैं :
 
:* प्रत्येक साझेदार द्वारा विनियोग की जाने वाली पूँजी की राशि,
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:* व्यवसाय के संचालन के लिए अन्य कोई भी शर्त।
 
* '''वैध-व्यवसाय''' : साझेदारों को सदैव वैध्वैध-व्यवसाय चलाने के लिए ही एक साथ कार्य करने चाहिए। तस्करी, काला बाज़ारीकालाबाजारी इत्यादि को कानून दृष्टि से साझेदारी व्यवसाय नहीं माना जा सकता।
 
* '''लाभ विभाजन''' : प्रत्येक साझेदारी फर्म का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय से होने वाले लाभ को तय किए गए अनुपात के अनुसार बांटना है। यदि साझेदारों में इस संबंध में कोई समझौता नहीं हुआ है तो लाभ साझेदारों में बराबर-बराबर बांटा जाता है।
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* '''असीमित देनदारी''' : एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय की तरह साझेदारी व्यवसाय में भी सदस्यों की देनदारी असीमित होती है। इस प्रकार यदि व्यवसाय के दायित्वों का भुगतान करने के लिए फर्म की सम्पतियां अपर्याप्त है, तो इसके लिए साझेदारों की निजी संपत्ति का उपयोग किया जा सकता है।
 
* '''स्वैच्छिक पंजीकरण''' : साझेदारी फर्म का पंजीकरण करना अनिवार्य नहीं है। हां, यदि आप फर्म का पंजीकरण नहीं कराते, तो आप कुछ लाभों से वंचित रह सकते हैं। इसलिए पंजीकरण करा लेना उचित होगा। पंजीकरण न कराने के कुछ बुरे परिणाम इस प्रकार हैं-
 
:* आपकी फर्म दावों के निपटारे के लिए किसी दूसरी पार्टी के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती।
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:* आपकी फर्म बकाया या भुगतान के मामले में किसी दूसरी पार्टी से समायोजन का दावा न्यायालय में नहीं कर सकती।
 
* '''स्वामी -एजेंट संबंधसम्बन्ध''' : किसी भी फर्म के साझेदार व्यवसाय के संयुक्त स्वामी होते हैं। उन सबको इस फर्म के प्रबंध्नप्रबन्धन में सक्रिय रूप से भाग लेने का समान अधिकर है। प्रत्येक साझेदार फर्म के प्रतिनिधि्प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर सकता है। जब कोई साझेदार किसी अन्य पक्ष से व्यवसाय संबंधी लेनदेन करता है तो वह अन्य साझेदारों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है और उसी समय अन्य साझेदार स्वामी बन जाते हैं इस प्रकार सभी साझेदारी फर्मों में साझेदारों के बीच आपस में स्वामी-एजेंट का संबंध होता है।
 
* '''व्यापार की निरंतरतानिरन्तरता''' : साझेदारी फर्म के किसी साझेदार के मरने, पागल या दिवालिया हो जाने से फर्म का अंत हो जाता है। इसके अलावा भी फर्म के सभी साझेदार जब चाहें साझेदारी समाप्त कर फर्म भंग कर सकते हैं।
 
== साझेदारी व्यवसाय के लाभ ==
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*[[हिन्दू संयुक्त परिवार]]
*[[भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.scotbuzz.org/2017/07/sajhedari-vyapar.html साझेदारी व्यापार क्या है ?]
*[https://archive.india.gov.in/business/hindi/starting_business/partnership.php भागीदारी फर्म के पंजीकरण की प्रक्रिया]
*[https://www.jagran.com/haryana/karnal-9256025.html https://archive.india.gov.in/business/hindi/starting_business/partnership.php भागीदारी फर्म क्या है और कैसे बनाएँ]
 
[[श्रेणी:व्यवसाय]]