"आपेक्षिकता सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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आइंस्टीन प्रणीत आपेक्षिकता सिद्धांत के दो विभाग हैं :
*'''(१) विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत, और '''
*'''(२) सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत। '''
 
विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत में भौतिकी के नियम इस स्वरूप में व्यक्त होते हैं कि वे किसी भी [[त्वरण|अत्वरित प्रेक्षक]] के लिए समान होंगे। सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में भौतिकी के नियम इस प्रकार व्यक्त होते हैं कि वे प्रेक्षक की गति से स्वतंत्र या अबाधित होंगे। विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत का विकास १९०५ में हुआ और सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत का विकास १९१५ में हुआ।
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इस समीकरण में '''G''' गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है। यदि हम '''m1''' को [[पृथ्वी]] का द्रव्यमान समझें और '''m2''' को धरती के पास स्थित किसी अन्य पिंड का द्रव्यमान समझें तो समीकरण (२) द्रव्यमान '''m2''' का [[भार]] व्यक्त करेगा। न्यूटन की यांत्रिकी में [[गतिविज्ञान]] तथा गुरुत्वाकर्षण स्वतंत्र और भिन्न हैं, किंतु दोनों में ही द्रव्यमान का संबंध आता है। द्रव्यमान के इन दो स्वतंत्र तथा भिन्न विभागों में प्रयुक्त कल्पनाओं का एकीकरण आइंस्टाइन ने अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में किया। यह ज्ञात था कि जड़त्व पर आश्रित द्रव्यमान (समीकरण १) और गुरुत्वीय द्रव्यमान (समीकरण २) समान होते हैं। आइंस्टाइन ने द्रव्यमान की इस समानता का उपयोग करके गतिविज्ञान और गुरुत्वाकर्षण को एकरूप किया और सन् १९१५ ई. में व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत प्रस्तुत किया।
 
सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत को [[गणित]] में सूत्रित करने की जो पद्धति है वह अन्य पद्धतियों से भिन्न है। इसमें विशेष ज्यामिति का उपयोग किया जाता है, जो [[यूक्लिड]] की त्रि-आयामी ज्यामिति से भिन्न है। <nowiki>[[मिंकोव्स्की]]</nowiki> ने यह बताया कि यदि विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत में [[दिक्]] के तीन आयाम तथा [[समय]] का चतुर्थ आयाम, इन चारों आयामों को लेकर एक 'चतुरायाम सतति' (फ़ोर डाइमेंशनल कॉन्टिनुअम), की कल्पना की जाए तो आपेक्षिकता सिद्धांत अधिक सरल हो जाता है। '''समक्षणिकता, निरपेक्ष नहीं है''' - यह प्रमाणित किया जा चुका है। इससे न्यूटन प्रणीत दिक् तथा समय की निरपेक्षता और स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। अत: भौतिक घटना व्यक्त करने के लिए दिक् तथा समय की चतुरायाम सतति अधिक स्वाभाविक है। [[रीमान]] ने 'चतुरायाम दिक्' की कल्पना करके उसकी ज्यामिति का जो विकास किया था उसका आइंस्टाइन ने अधिक उपयोग किया। दिक् तथा समय की इस चतुरायाम सतति में भौतिकी के सिद्धांत ज्यामितीय रूप से सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत में रखे गए। इस चतुरायाम सतति का (अथवा 'विश्व' का) युक्लिड के तीन आयाम के दिक् से साम्य है। तीन आयाम की सतति में, (x, y, z) इन तीन निर्देशांकों से (अथवा आयामों से) जिस प्रकार बिंदु अथवा एक स्थान निश्चित होता है, वैसे ही दो बिंदु (x1, y1, z1) और (x2, y2, z2) के बीच की लंबाई भी निश्चित होती है। चतुरायाम सतति में दिक् के (x, y, z) इन तीन आयामों के साथ जब '''समय''' भी जोड़ा जाता है तब समय का आयाम ([[विमा]]) रूप t = x<sup>0.5</sup>c<sup>-1</sup> आता है, जहाँ '''t''' = समय और '''c''' = प्रकाश का वेग है। एक प्रेक्षक के लिए एक विश्वघटना के निर्देंशांक (x, y, z, t) हों तो उस प्रेक्षक के सापेक्ष गतिमान् दूसरे प्रेक्षक के लिए उसी घटना के निर्देशंक (x', y', z', t') होंगे। [[लारेंज रूपान्तर|लोरेंज़ के रूपांतरण]] के नियम यदि यथार्थ हों तो सिद्ध किया जा सकता है कि
 
:<math>\ \Delta s^{2} = -c^{2}(\Delta t)^2+(\Delta x)^{2}+(\Delta y)^{2}+(\Delta z)^{2}</math> --- (३)