"मीना कुमारी": अवतरणों में अंतर

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लेकिन स्वछंद प्रवृति की मीना अमरोही से [[1964]] में अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म [[पाक़ीज़ा]] को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी।
अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था।  हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर दिखी अब तक की सबसे दमदार अभिनेत्रियों में मीना कुमारी का नाम आता है। उनकी फिल्मों को “क्लासिक” (Classic) की श्रेणी में रखा जाता है। मीना कुमारी को फिल्म इंडस्ट्री में ट्रेजेडी क्वीन का दर्जा मिला। फिल्मों के साथ-साथ असल जिंदगी में भी मीना कुमारी के साथ कई दुखद हादसे हुए। , जब फिराक (असली नाम 'रघुपति सहाय') को एक मुशायरे में आमंत्रित किया गया।
 
मीरा कुमारी और फ़िराक़ गोरखपुरी से जुड़ा एक वाक़या १९६० के आसपास का है. ‘फ़िराक़ गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में इस वाकये का जिक्र किया गया है। फ़िराक़ की इस जीवनी के लेखक उनके रिश्तेदार अजय मानसिंह हैं। एक बार जाने-माने शायर फ़िराक़ गोरखपुरी ने मुशायरा छोड़ दिया था। उन्होंने देखा कि मुशायरे में अभिनेत्री मीरा कुमारी शामिल हो रही हैं। उनका मानना था कि, "मुशायरे सिर्फ शायरों की जगह हैं।"
वाकया 1959-60 का है, जब फिराक (असली नाम 'रघुपति सहाय') को एक मुशायरे में आमंत्रित किया गया। जाने-माने शायर फिराक गोरखपुरी ने एक बार मुशायरा छोड़ दिया था, क्योंकि उन्होंने देखा कि उसमें अभिनेत्री मीरा कुमारी शामिल हो रही हैं। उनका कहना था कि मुशायरे सिर्फ शायरों की जगह हैं। ‘फिराक गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में इस वाकये का जिक्र किया गया है। फिराक की इस जीवनी के लेखक उनके रिश्तेदार अजय मानसिंह हैं।
 
जब फिराकफ़िराक़ मुशायरा स्थल पर पहुंचे तो उनका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया गया और मुशायरे की शुरुआत पूरे जोशो-खरोश के साथ हुई. करीब एक घंटे के बाद वहां ऐलान किया गया कि मौके पर अदाकारा मीना कुमारी पहुंच चुकी हैं.हैं। मुशायरे में शामिल लोग शायरों को मंच पर छोड़कर मीना कुमारी की झलक पाने के लिए भागे.भागे।
 
इससे नाराज फिराकफ़िराक़ ने मौके से जाने का फैसला किया.किया। इस पर आयोजक उन्हें मनाने की कोशिश में जुट गए.गए। मीना कुमारी ने भी शर्मिंदगी महसूस की और फिराक से बार-बार गुजारिश की कि वह रुकें.रुकें। मीना कुमारी ने उनसे कहा, "जनाब, मैं आपको सुनने के लिए आई हूं.हूं।" फिराकफ़िराक़ ने इस पर तुरंत जवाब दिया, "मुशायरा मुजरा बन चुका है. मैं ऐसी महफिल से ताल्लुक नहीं रखता.”रखता।”
 
इसके एक दिन बार फिराकफ़िराक़ ने कहा, "मैं मीना कुमारी की वजह से वहां से नहीं हटा था.था। आयोजकों और दर्शकों के व्यवहार के कारण वहां से हटा, जिन्होंने हमारी बेइज्जती की थी.थी।" उनकी दलील थी कि, "मुशायरा शायरी का मंच है.है। यहां के कलाकार सिर्फ शायर होते हैं और यहां की व्यवस्था में एक पदानुक्रम होता है जिसका पालन किया जाना चाहिए.”चाहिए।”
 
यहाँ ये बता देना ज़रूरी है कि फ़िराक़ गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय; २८ अगस्त १८९६—३ मार्च १९८२) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई।
 
==मृत्यु==