"मीना कुमारी": अवतरणों में अंतर

done
done
पंक्ति 48:
[[1957]] में मीना कुमारी दो फिल्मों में पर्दे पर नज़र आईं। प्रसाद द्वारा कृत पहली फ़िल्म ''[[मिस मैरी (1957 फ़िल्म)|मिस मैरी]]'' में कुमारी ने [[दक्षिण भारत]] के मशहूर अभिनेता [[जेमिनी गणेशन]] और [[किशोर कुमार]] के साथ काम किया। प्रसाद द्वारा कृत दूसरी फ़िल्म ''[[शारदा (1957 फ़िल्म)|शारदा]]'' ने मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन बना दिया। यह उनकी [[राज कपूर]] के साथ की हुई पहली फ़िल्म थी। जब उस ज़माने की सभी अदाकाराओं ने इस रोल को करने से मन कर दिया था तब केवल मीना कुमारी ने ही इस रोल को स्वीकार किया था और इसी फिल्म ने उन्हें उनका पहला '''बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री''' का खिताब दिलवाया। लेकिन स्वछंद प्रवृति की मीना अमरोही से [[1964]] में अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म [[पाक़ीज़ा]] को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी।
 
'''<big>शाइरी से सम्बन्धित एक दिलचस्प वाक़या</big>'''
अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था।  हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर दिखी अब तक की सबसे दमदार अभिनेत्रियों में मीना कुमारी का नाम आता है। उनकी फिल्मों को “क्लासिक” (Classic) की श्रेणी में रखा जाता है। मीना कुमारी को फिल्म इंडस्ट्री में ट्रेजेडी क्वीन का दर्जा मिला। फिल्मों के साथ-साथ असल जिंदगी में भी मीना कुमारी के साथ कई दुखद हादसे हुए।
 
शाइरी से सम्बन्धित मीरा कुमारी और फ़िराक़ गोरखपुरी से जुड़ा एक दिलचस्प वाक़या १९६०1960 के आसपास का है। जब फ़िराक़ (असली नाम 'रघुपति सहाय') को एक मुशायरे में आमंत्रित किया गया। ‘फ़िराक़ गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में इस वाक़ये का जिक्र किया गया है। फ़िराक़ की जीवनी के लेखक खुद उनके रिश्तेदार अजय मानसिंह हैं। एक बार जाने-माने शायर फ़िराक़ गोरखपुरी ने महज़ इसलिए मुशायरा छोड़ दिया था कि उन्होंने देखा मुशायरे में अभिनेत्री मीरा कुमारी शामिल हो रही हैं। उनका मानना था कि, "मुशायरे सिर्फ शायरों की जगह हैं।"
 
जब फ़िराक़ मुशायरा स्थल पर पहुंचे तो उनका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ स्वागत किया गया और मुशायरे की शुरुआत पूरे जोशो-खरोश के साथ हुई। करीब एक घंटे के बाद वहां ऐलान किया गया कि मौके पर अदाकारा मीना कुमारी पहुंच चुकी हैं। मुशायरे में शामिल लोग शायरों को मंच पर छोड़कर मीना कुमारी की झलक पाने के लिए भागे।
पंक्ति 58:
इसके एक दिन बार फ़िराक़ ने कहा, "मैं मीना कुमारी की वजह से वहां से नहीं हटा था। आयोजकों और दर्शकों के व्यवहार के कारण वहां से हटा, जिन्होंने हमारी बेइज्जती की थी।" उनकी दलील थी कि, "मुशायरा शायरी का मंच है। यहां के कलाकार सिर्फ शायर होते हैं और यहां की व्यवस्था में एक पदानुक्रम होता है जिसका पालन किया जाना चाहिए।”
 
यहाँ ये बता देना ज़रूरी है कि फ़िराक़ गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय; २८28 अगस्त १८९६—३1896—3 मार्च १९८२1982) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई।
 
==मृत्यु==