"महबूब अली खान": अवतरणों में अंतर

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== प्रारंभिक जीवन ==
उनके पिता की मृत्यु के समय वह केवल दो वर्ष और सात महीने के थे . इस प्रकार 1869 में असफ जाही राजवंश का 6 वां निजाम बन गया। उन्हें [[सलार जंग I| मीर तुराब अली खान, सालार जंग I]] द्वारा निजाम के रूप में स्थापित किया गया था, "नवाब" रशीद-उद-दीन खान 'शम्स-उल-उमरा III' 'जिन्होंने रीजेंट के रूप में काम किया था। शम्स-उल-उमरा III की मृत्यु 12 दिसंबर 1881 को हुई और सालार जंग मैं एकमात्र रीजेंट बन गया। उन्हें 8 फरवरी 1883 को उनकी मृत्यु तक प्रशासक और रीजेंट के रूप में रखा गया था। अंग्रेजी द्वारा प्रशिक्षित महबूब अली खान की शिक्षा के लिए विशेष ध्यान दिया गया था। सालार जंग की सहमति के साथ, कैप्टन जॉन क्लर्क को प्रशिक्षित करने के लिए नियुक्त किया गया था और फारसी, अरबी और उर्दू में अच्छी तरह से विद्वानों को भी शिक्षक के रूप में शामिल किया गया था। सर सलार जंग का व्यक्तित्व और महान जीवन असफ़ जहां छठी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।
 
== जीवनशैली ==
== '''जीवन शैली''' ==
वह उर्दू, तेलुगु और पारसी भाषाओं में भी धाराप्रवाह थे । उन्होंने उर्दू और तेलुगु में कविताएं भी लिखीं; जिनमें से कुछ टैंक बंड की दीवारों के साथ अंकित किया है। अपने जीवनकाल में उन्होंने 33 बाघों का शिकार किया थाथा। जिसके चलते उन्हें "तेज़तीस मार खान" के नाम से भी जाना जाता था। कई बार किसानूँ को जान से हाथ धोना पड़ता था, अधिकांश बाघ आस-पास के गांवों के स्थानीय किसानों के लिए जानलेवा खतरा थे, जिनकी बचाव में उनके राजा स्वयं कई बार आ जाय करते थे। [http://www.dnaindia.com/lifestyle/report-staying-at-falaknuma-is-like-holding-a-mirror-up-to-our-past-1741439]<ref>{{Cite web|url=https://gulfnews.com/news/asia/india/hyderabad-remembers-mahbub-ali-pasha-1.1889879|title=Hyderabad remembers Mahbub Ali Pasha|last=सिद्दीकी|first=मोहम्मद|date=सितम्बर २, २०१६|website=|language=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>