"आमेर दुर्ग": अवतरणों में अंतर

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एक अन्य किम्वदन्ती के अनुसार राजा मान सिंह को जेस्सोर के राजा ने पराजित होने के उपरांत यह श्याम शिला भेंट की जिसका महाभारत से सम्बन्ध है। महाभारत में कृष्ण के मामा मथुरा के राजा कंस ने कृष्ण के पहले ७ भाई बहनों को इसी शिला पर मारा था। इस शिला के बदले राजा मान सिंह ने जेस्सोर का क्षेत्र पराजित बंगाल नरेश को वापस लौटा दिया। तब इस शिला पर दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी रूप को उकेर कर आमेर के इस मन्दिर में स्थापित किया था। तब से शिला देवी का पूजन आमेर के कछवाहा राजपूतों में प्राचीन देवी के रूप में किया जाने लगा, हालांकि उनके परिवार में पहले से कुलदेवी रूप में पूजी जा रही [[जामवा रामगढ़|रामगढ़]] की जामवा माता ही कुलदेवी बनी रहीं।<ref name="Babb2004"/>
 
इस मन्दिर से जुड़ी एक अन्य प्रथा पशु-बलि की भी थी जो वर्ष में आने वाले दोनों [[नवरात्रि]] त्योहारों पर (शारदीय एवं चैत्रीय) की जाती थी। इस प्रथा में नवरात्रि की [[महाअष्टमी]] के दिन मन्दिर के द्वार के आगे एक भैंसे और बकरों की बलि दी जाती थी। इस प्रथा के साक्षी राजपरिवार के सभी सदस्य एवं अपार जनसमूह होता था। इस प्रथा को १९७५ ई॰ से भारतीय दंड संहिता की धारा ४२८<ref>{{Cite web|url=https://hindi.lawrato.com/इंडियन-कानून/आईपीसी/धारा-428|title=इंडियन कानून धारा 428 आईपीसी - इंडियन पीनल कोड - दस रुपए के मूल्य के जीवजन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि|publisher=lawrato.com|accessdate=२६ मार्च २०१८}}</ref> और ४२९<ref>{{Cite web|url=https://hindi.lawrato.com/इंडियन-कानून/आईपीसी/धारा-429|title=इंडियन कानून धारा 429 आईपीसी - इंडियन पीनल कोड - किसी मूल्य के ढोर, आदि को या पचास रुपए के मूल्य के किसी जीवजन्तु का वध करने या उसे विकलांग करने आदि द्वारा कुचेष्टा।|publisher=lawrato.com|accessdate=२६ मार्च २०१८}}</ref> के अन्तर्गत्त निषेध कर दिया गया। इसके बाद ये प्रथा जयपुर के महल प्रासाद के भीतर गुप्त रूप से जारी रही। तब इसके साक्षी मात्र राजपरिवार के निकट सदस्य ही हुआ करते थे। अब ये प्रथा पूर्ण रूप से समाप्त कर दी गयी है और देवी को केवल शाकाहारी भॆंटभेंट ही चढ़ायी जाती हैं।<ref name="Babb2004"/>
 
===द्वितीय प्रांगण ===