"शाह जहाँ": अवतरणों में अंतर
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1658 में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को ताजमहल में शाही ख़जाने को ख़र्च करने के ज़ुर्म में बंदी बना लिया था इसके बाद शाहजहॉ ने अपने जीवन के अंतिम आठ बर्ष आगरा के किलेे में एक बंदी के रूप में व्यतीत किये जहा उसे औरंगज़ेब पीने के लिए नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था । जब तक शाहजहां जीवित रहे, तब तक शाहजहां की बेटी 'जहां आरा' ने जेल में रहकर उनकी तीमारदारी की। शाहजहां को नज़रबंद कर औरंगज़ेब ने अपने को बादशाह घोषित करवाया। कहा जाता हैं कि मरने से पहले शाहजहां ने अपने पुत्र औरंगजेब को एक चिट्ठी लिखी थी । इस पत्र के आखिरी पंक्तियों में शाहजहां ने लिखा था कि “ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी ब पिदरे जिंदा आब तरसानीआफरीन बाद हिंदवान सद बार मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब” ।
इसका अर्थ है कि पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है । उन हिन्दुओं को शत शत नमन जो अपने मृत पूर्वजो को भी पानी देते हैं । इस पत्र के जवाब में औरंगजेब ने लिखा कि जिस स्याही से यह पत्र लिखा है उसी स्याही को पी लो और मर जाओ
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