"अखिल भारतीय हिन्दू महासभा": अवतरणों में अंतर
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== वीर सावरकर का आगमन ==
[[चित्र:Nathuram.jpg|अंगूठाकार|१९३०-४० के दशक का अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के नेताओं का समूह-छबि : इसमें '''खड़े हैं'''- [[शंकर किस्तैया]], [[गोपाल गोडसे]], [[मदनलाल पाहवा]], [[दिगम्बर बाडगे]] ; '''बैठे हुए'''- [[नारायण आप्टे]], [[विनायक दामोदर सावरकर]], [[नाथूराम गोडसे]], [[विष्णु करकरे]]]]
सन् 1937 में जब हिन्दू महासभा काफी शिथिल पड़ गई थी और [[महात्मा गांधी|गांधी]] लोकप्रिय हो रहे थे, तब [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]] [[रत्नागिरि]] की [[नजरबंदी (कैद)|नजरबंदी]] से मुक्त होकर आए। वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी। उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं - उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।▼
▲वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी। उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं - उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।
== हैदराबाद का सत्याग्रह ==
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