"अखिल भारतीय हिन्दू महासभा": अवतरणों में अंतर

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सन् 1941 में भागलपुर अधिवेशन पर अंग्रेज गवर्नमेंट की आज्ञा से प्रतिबंध लगा दिया गया कि बकरीद के पहले हिंदू महासभा अपना अधिवेशन न करे, अन्यथा हिंदू मुस्लिम दंगे की संभावना हो सकती है। वीर सावरकर ने कहा कि हिंदुमहासभा दंगा करना नहीं चाहती, अत: दंगाइयों के बदले शांतिप्रिय नागरिकों के अधिकारों का हनन करना घोर अन्याय है। वीर सावरकर लगभग 5,000 प्रतिनिधियों के साथ भागलपुर जा रहे थे कि अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गया में ही रोककर गिरफ्तार कर लिया। भाई परमानंद, डॉ॰ मुंजे, डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी आदि नेता भी बंदी बनाए गए, फिर भी न केवल भागलपुर में वरन् संपूर्ण बिहार प्रांत में तीन दिनों तक हिंदू महासभा के अधिवेशन आयोजित हुए जिसें वीर सावरकर का भाषण पढ़ा गया तथा प्रस्ताव पारित हुए।
 
== घोर विरोध के बावजूद पाकिस्तान की स्थापना ==
हिंदू महासभा ने पाकिस्तान बनने का विरोध किया। हिंदू महासभा के नेता [[रामचन्द्र वीर]] और वीर सावरकर ने विभाजन का विरोध किया। वर्तमान समय में देश की परिस्थितियों को देखते हुए हिंदू महासभा इसपर बल देती है कि देश की जनता को, प्रत्येक देशवासी को अनुभव करना चाहिए कि जब तक संसार के सभी छोटे मोटे राष्ट्र अपने स्वार्थ और हितों को लेकर दूसरों पर आक्रमण करने की घात में लगे हैं, उस समय तक भारत की उन्नति और विकास के लिए प्रखर हिंदू राष्ट्रवादी भावना का प्रसार तथा राष्ट्र को आधुनिकतम अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होना नितांत आवश्यक है।
हिंदू महासभा के घोर विरोध के पश्चात् भी अंग्रेजों ने कांग्रेस को राजी करके मुसलमानों को पाकिस्तान दे दिया और हमiरी परम पुनीत भारत भूमि, जो इतने अधिक आक्रमणों का सामना करने के बाद भी कभी खंडित नहीं हुई थी, खंडित हो गई। हिंदू महासभा के नेता [[महात्मा रामचन्द्र वीर]] (हिन्दु सन्त, कवि, लेखक) और वीर सावरकर ने विभाजन का घोर विरोध किया। यद्यपि पाकिस्तान की स्थापना हो जाने से मुसलमानों की मुंहमाँगी मुराद पूरी हो गई और भारत में भी उन्हें बराबरी का हिस्सा प्राप्त हो गया है, फिर भी कितने ही मुसलिम नेता तथा कर्मचारी छिपे रूप से पाकिस्तान का समर्थन करते तथा भारतविरोधी गतिविधियों में सहायक होते रहते हैं। फलस्वरूप कश्मीर, असम, राजस्थान आदि में अशांति तथा विदेशी आक्रमण की आशंका बनी रहती है।
 
वर्तमान समय में देश की परिस्थितियों को देखते हुए हिंदू महासभा इसपर बल देती है कि देश की जनता को, प्रत्येक देशवासी को अनुभव करना चाहिए कि जब तक संसार के सभी छोटे मोटे राष्ट्र अपने स्वार्थ और हितों को लेकर दूसरों पर आक्रमण करने की घात में लगे हैं, उस समय तक भारत की उन्नति और विकास के लिए प्रखर हिंदू राष्ट्रवादी भावना का प्रसार तथा राष्ट्र को आधुनिकतम अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होना नितांत आवश्यक है।
[[चित्र:Horse and rider Indian election symbol.png|अंगूठाकार|१९५१/५२ के प्रथम लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा को 'राष्ट्रीय दल' के रूप में मान्यता दी थी। इसे 'घोडा और घुड़सवार' चुनाव-चिह्न प्रदान किया गया था।]]