"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ": अवतरणों में अंतर

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[[महात्मा गाँधी]] की [[१९४८]] में संघ के पूर्व सदस्य [[नाथूराम गोडसे]] ने उनकी हत्या कर दी थी जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोडसे संघ और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस आरोप से बरी किया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
 
संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक [[अतिवादी]] दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि [[भारत सरकार|सरकार]] एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक [[तुष्टीकरण]] में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद [[शाहबानो प्रकरण]] एवं [[हज]]-यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की सरकारी नीति उसके अनुसार इसके प्रमाण हैं।
 
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से [[हिंदू]] स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की [[धर्मनिरपेक्षता|धर्मनिरपेक्ष]] बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि [[हिन्दुत्व]] एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को [[हिन्दू]] कहते हों ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो [[भारत]] को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात्‌ जहाँ उसके पूर्वज रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात्‌ जहां उसके देवी देवताओं का वास है); हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि [[धर्मनिरपेक्ष]] है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला [[अयोध्या विवाद]] रहा है जिसमें [[बाबर]] द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मसजिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है।