"श्रीमद्भगवद्गीता": अवतरणों में अंतर
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{{सन्दूक हिन्दू धर्म}}
[[कुरु क्षेत्र]] की युद्धभूमि में [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को जो उपदेश दिया था वह '''श्रीमद्भगवदगीता''' के नाम से प्रसिद्ध है। यह [[महाभारत]] के [[भीष्मपर्व]] का अंग है। गीता में १८ अध्याय और
गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार [[वेद|वेदों]] के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।
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