"पुरूवास": अवतरणों में अंतर

सिकंदर की सेना हाथी से प्रथम परिचय।
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो Tridiv Singh (Talk) के संपादनों को हटाकर Godric ki Kothri के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 6:
|image=Indian_war_elephant_against_Alexander’s_troops_1685.jpg
}}
'''राजा पुरुवास''' या '''राजा पोरस''' का राज्य पंजाब में [[झेलम]] से लेकर [[चेनाब]] नदी तक फैला हुआ था। वर्तमान [[लाहौर]] के आस-पास इसकी राजधानी थी। राजा पोरस (राजा पुरू भी) पोरवा राजवंश के वशंज थे, जिनका साम्राज्य पंजाब में झेलम और चिनाब नदियों तक (ग्रीक में ह्यिदस्प्स और असिस्नस) और उपनिवेश ह्यीपसिस तक फैला हुआ था। राजा पुरूवास अथवा '''पोरस''' के नाम पर ही इतिहास में पुरुषपुर नगर का नाम रखा गया था जिसे आधुनिक समय में हम पेशावर (पाकिस्तान) के नाम से जानते हैं।
 
== जीवनी ==
पंक्ति 38:
 
 
जासूसों और धूर्तताके बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे।उठे थे।
 
जासूसों और धूर्तताके बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे। राजा पुरु के शत्रु लालची आम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने झेलम पार की। राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी 7 फुट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े। पोरस की हस्ती सेना ने यूनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था उससे सिकंदर और उसके सैनिक आतंकित हो उठे।
 
भारत में प्रवेश करने से पहले सिकंदर की सेना का कभी भी ऐसी सेना सेना से सामना नहीं हुआ था जिसमे हाथी रहा हो। हाथियों से लड़ने का युद्ध कौशल वो नहीं जानते थे। एक विशालकाय हाथियों को देख सिकंदर की सेना भी डर जाती थी। ऊपर से बाढ़ की परिस्थितियों ने भी एक बड़ी परेशानी विदेशी सेना के लिए खड़ी कर रखी थी।
 
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए। यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है। राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था।