"कोशिकीय श्वसन": अवतरणों में अंतर
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आशीष भटनागर (वार्ता | योगदान) |
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श्वसन एक ऊर्जा-उन्मोचन प्रक्रिया है। श्वसन की क्रिया में भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है, जिससे उनमें संचित ऊर्जा मुक्त होती है। श्वसन के समय मुक्त ऊर्जा का कुछ भाग कोशिका के माइटोकॉन्ड्रिया में एटीपी के रूप में संचित हो जाती है। एटीपी के रूप में संचित यह ऊर्जा भविष्य में सजीव जीवधारियों के विभिन्न जैविक क्रियायों के संचालन में प्रयुक्त होती है। मुक्त होनी वाली [[ऊष्मीय ऊर्जा]] सजीवों के शरीर के [[तापक्रम]] को संतुलित बनाए रखने में सहायता करती है। कुछ [[कीटों]] तथा समुद्री जंतुओं के शरीर से प्रकाश उत्पन्न होता है। यह प्रकाश श्वसन द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का ही एक रूपान्तरित रूप है। कुछ समुद्री जीवों जैसे- इलेक्ट्रिक-रे मछली तथा टारपीडो आदि का शरीर आत्म-रक्षा के लिए विद्युतीय तरंगे उत्पन्न करता है, यह [[विद्युत]] श्वसन द्वारा उत्पन्न ऊर्जा के रूपान्तरण से उत्पन्न होता है।<ref name="यादव"/>
== प्रकाश-संश्लेषण एवं श्वसन में
[[प्रकाश-संश्लेषण]] एवं श्वसन की क्रियाएँ एक दूसरे की पूरक एवं विपरीत होती हैं। प्रकाश-संश्लेषण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड और जल के बीच रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोज का निर्माण होता है तथा ऑक्सीजन मुक्त होती है। श्वसन में इसके विपरीत ग्लूकोज के [[ऑक्सीकरण]] के फलस्वरूप जल तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड बनती हैं। प्रकाश-संश्लेषण एक रचनात्मक क्रिया है इसके फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में वृद्धि होती है। श्वसन एक नासात्मक क्रिया है, इस क्रिया के फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में कमी आती है।<ref name="श्रीवास्तव"/> प्रकाश-संश्लेषण में सौर्य ऊर्जा के प्रयोग से भोजन बनता है, विकिरण ऊर्जा का रूपान्तरण [[रासायनिक ऊर्जा]] में होता है। जबकि श्वसन में भोजन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होती है, भोजन में संचित रासायनिक ऊर्जा का प्रयोग सजीव अपने विभिन्न कार्यों में करता है। इस प्रकार ये दोनों क्रियाएँ अपने कच्चे माल के लिए एक दूसरे के अन्त पदार्थों पर निर्भर रहते हुए एक दूसरे की पूरक होती हैं।
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