"समाधि": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 8:
(2) असम्प्रज्ञात समाधि--संप्रज्ञात समाधि का दीर्घकाल तक अभ्यास करने से जब नाम की स्मृति न रहकर केवल नामी (ध्येय) रह जाता है तब चित्तवृत्ति निरुद्ध हो जाती है। चित्तवृत्ति निरुद्ध हो जाने पर असंप्रज्ञात (निर्विकल्प) समाधि होती है जो योगियों को अत्यंत प्रिय है। इस समाधि की अवस्था में प्रभा,मन,बुद्धि और शब्द से वाच्य अवस्थात्रय से शून्य ज्ञान स्वरूप जो ब्रह्म है उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस समाधि में उपर नीचे और बीच में सर्वत्र शिव स्वरूप पूर्ण ब्रह्म की अनुभूति होती है। यह साक्षात् विधिमुख परमार्थिक समाधि है। सम्प्रज्ञात समाधि के चार भेद हैं- (1) वितर्कानुगत (2) विचारानुगत (3) आनन्दानुगत (4) अस्मितानुगत।
(1) वितर्कानुगत सम्प्रज्ञात समाधि :- भावना द्वारा ग्राहय रूप किसी स्थूल-विषय विराट्, महाभूत शरीर, स्थलैन्द्रिय आदि किसी वस्तु पर चित्त को स्थिर कर उसके यथार्थ स्वरूप का सम्पूर्ण विषयों सहित जो पहले कभी देखें, सुने एवं अनुमान न किये हो, साक्षात् किया जाये वह वितर्कानुगत समाधि है। वितर्कानुगत समाधि के दो भेद हैं (1)सवितर्कानुगत(2) अवितर्कानुगत। सवितर्कानुगत समाधि शब्द, अर्थ एवं ज्ञान की भावना सहित होती है। अवितर्कानुगत समाधि शब्द, अर्थ एवं ज्ञान की भावना से रहित केवल अर्थमात्र होती है।
 
(2) विचारानुगत सम्प्रज्ञात समाधि :- जिस भावना द्वारा स्थूलभूतों के कारण पंच सूक्ष्मभूत तन्मात्राएं तथा अन्तः करण आदि का सम्पूर्ण विषयों सहित साक्षात्कार किया जाये वह विचारानुगत सम्प्रज्ञात समाधि है। यह समाधि भी दो प्रकार की होती है। (1) सविचार (2) निर्विचार। जब शब्द स्पर्श, रूप रस गंध रूप सूक्ष्म तन्मात्राओं एवं अन्तःकरण रूप सूक्ष्म विषयों का आलम्बन बनाकर देश, काल, धर्म आदि दशाओं के साथ ध्यान होता है, तब वह सविचार सम्प्रज्ञात समाधि कहलाती है। जब संसार की सूक्ष्म वासना रहती है तब सविचार या सबीज समाधि होती है।सविचार समाधि मे अहम् ( मैपन) के साथ सम्बन्ध रहता है। अहम् के सम्बन्ध से दो अवस्थाएं होती है, समाधि और व्युत्थान। शुक्ष्म वासना के कारण इस सबीज ( सविचार) समाधि में अनेक प्रकार की सिद्धिया प्रकट हो जाती हैं। ये सिद्धिया सांसारिक दृष्टि से तो ऐश्वर्य हैं, परन्तु परमात्म तत्व की दृष्टि में वाधक हैं।
जब योगी इन सिद्धियों मे न फंस कर इनसे उपराम हो जाता है तब निर्विचार या निर्वीज समाधि होती है।निर्वीज समाधि मे अहम् न होने के कारण शरीर से सर्वदा सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है, और योगी अपने सहज स्वभाव मे स्थित हो जाता है। चार सम्प्रज्ञात समाधि के ही विषयां में देश-काल, धर्म इत्यादि सम्बन्ध के बिना ही, मात्र धर्मी के, स्वरूप का ज्ञान प्रदान कराने वाली भावना निर्विचार समाधि कही जाती है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/समाधि" से प्राप्त