"भारतेन्दु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म [[९ सितंबर]], [[१८५०]] में [[काशी]] के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ।<ref name="जोशी"/> उनके पिता गोपालचंद्र एक अच्छे कवि थे और 'गिरधरदास 'उपनाम से कविता लिखा करते थे। [[१८५७]] में [[प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के समय उनकी आयु ७ वर्ष की होगी। ये दिन उनकी आँख खुलने के थे। भारतेन्दु का कृतित्व साक्ष्य है कि उनकी आँखें एक बार खुलीं तो बन्द नहीं हुईं। उनके पूर्वज अंग्रेज भक्त थे, उनकी ही कृपा से धनवान हुये थे। हरिश्चंद्र पाँच वर्ष के थे तो माता की मृत्यु और दस वर्ष के थे तो पिता की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार बचपन में ही माता-पिता के सुख से वंचित हो गये। विमाता ने खूब सताया। बचपन का सुख नहीं मिला।<ref name="अनुभूति">[http://www.anubhuti-hindi.org/dohe/bhartendu.htm [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]]- अनुभूति पर</ref> शिक्षा की व्यवस्था प्रथापालन के लिए होती रही। संवेदनशील व्यक्ति के नाते उनमें स्वतन्त्र रूप से देखने-सोचने-समझने की आदत का विकास होने लगा। पढ़ाई की विषय-वस्तु और पद्धति से उनका मन उखड़ता रहा। क्वींस कॉलेज, [[बनारस]] में प्रवेश लिया, तीन-चार वर्षों तक कॉलेज आते-जाते रहे पर यहाँ से मन बार-बार भागता रहा। स्मरण शक्ति तीव्र थी, ग्रहण क्षमता अद्भुत। इसलिए परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते रहे। बनारस में उन दिनों अंग्रेजी पढ़े-लिखे और प्रसिद्ध लेखक - [[राजा शिव प्रसादशिवप्रसाद|राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द'सितारेहिन्द']] थे, भारतेन्दु शिष्य भाव से उनके यहाँ जाते। उन्हीं से अंग्रेजी शिक्षा सीखी। भारतेन्दु ने स्वाध्याय से [[संस्कृत]], [[मराठी]], [[बंगला]], [[गुजराती]], [[पंजाबी]], [[उर्दू]] भाषाएँ सीख लीं।
 
उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-
 
:'''लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान।'''
:'''वाणासुरबाणासुर की सेन को हनन लगे भगवान॥'''
धन के अत्यधिक व्यय से भारतेंदु जी ॠणी बन गए और दुश्चिंताओं के कारण उनका शरीर शिथिल होता गया। परिणाम स्वरूप १८८५ में अल्पायु में ही मृत्यु ने उन्हें ग्रस लिया।