"भारतेन्दु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर
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'''भारतेन्दु हरिश्चन्द्र''' ([[9 सितंबर]] [[1850]]-[[6 जनवरी]] [[1885]]) आधुनिक [[हिंदी साहित्य]] के पितामह कहे जाते हैं। वे [[हिन्दी]] में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने [[रीतिकाल]] की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर
भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी [[पत्रकारिता]], [[नाटक]] और [[काव्य]] के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का
== जीवन परिचय ==
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* बन्दर सभा (हास्य व्यंग)
* बकरी विलाप (हास्य व्यंग)
===कहानी===
अद्भुत अपूर्व स्वप्न
==यात्रा वृत्तान्त==▼
सरयूपार की यात्रा,▼
लखनऊ▼
▲===यात्रा वृत्तान्त====
==आत्मकथा==▼
▲* लखनऊ
▲===आत्मकथा===
एक कहानी- कुछ आपबीती, कुछ जगबीती
===उपन्यास===
पूर्णप्रकाश चन्द्रप्रभा▼
* पूर्णप्रकाश
|}
== वर्ण्य विषय ==
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== भाषा ==
भारतेंदु जी की भाषा में कहीं-कहीं व्याकरण संबंधी अशुध्दियां भी देखने को मिल जाती हैं। [[मुहावरा|मुहावरों]] का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है। भारतेंदु जी की भाषा सरल और व्यवहारिक है।
== शैली ==
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भारतेंदु जी ने लगभग सभी रसों में कविता की है। श्रृंगार और शांत की प्रधानता है। श्रृंगार के दोनों पक्षों का भारतेंदु जी ने सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में हास्य रस की भी उत्कृष्ट योजना मिलती है।
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भारतेंदु जी ने अपने समय में प्रचलित प्रायः सभी छंदों को अपनाया है। उन्होंने केवल हिंदी के ही नहीं उर्दू, संस्कृत, बंगला भाषा के छंदों को भी स्थान दिया है। उनके काव्य में संस्कृत के बसंत तिलका, शार्दूल, विक्रीड़ित, शालिनी आदि हिंदी के चौपाई, छप्पय, रोला, सोरठा, कुंडलियां कवित्त, सवैया घनाछरी आदि, बंगला के पयार तथा उर्दू के रेखता, ग़ज़ल छंदों का प्रयोग हुआ है। इनके अतिरिक्त भारतेंदु जी कजली, ठुमरी, लावनी, मल्हार, चैती आदि लोक छंदों को भी व्यवहार में लाए हैं।
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== महत्वपूर्ण कार्य ==
आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेंदु जी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भारतेंदु बहूमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध आदि सभी क्षेत्रों में उनकी देन अपूर्व है। भारतेंदु जी हिंदी में नव जागरण का संदेश लेकर अवतरित हुए। उन्होंने हिंदी के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण कार्य किया। भाव, भाषा और शैली में नवीनता तथा मौलिकता का समावेश करके उन्हें आधुनिक काल के अनुरूप बनाया। आधुनिक हिंदी के वे जन्मदाता माने जाते हैं। हिंदी के नाटकों का सूत्रपात भी उन्हीं के द्वारा हुआ।
भारतेंदु जी अपने समय के साहित्यिक नेता थे। उनसे कितने ही प्रतिभाशाली लेखकों को जन्म मिला। मातृ-भाषा की सेवा में उन्होंने अपना जीवन ही नहीं संपूर्ण धन भी अर्पित कर दिया। हिंदी भाषा की उन्नति उनका मूलमंत्र था -
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