"हिन्दी पत्रकारिता": अवतरणों में अंतर

छो MahavirUttranchali (Talk) के संपादनों को हटाकर Hindustanilanguage के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 18:
 
== हिंदी पत्रकारिता का दूसरा युग : भारतेन्दु युग ==
हिंदी पत्रकारिता का दूसरा युग 1873 से 1900 तक चलता है। इस युग के एक छोर पर [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र|भारतेन्दु]] का "हरिश्चंद्र मैगजीन" था ओर [[नागरीप्रचारिणी सभा]] द्वारा अनुमोदनप्राप्त "[[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]]"। इन 27 वर्षों में प्रकाशित पत्रों की संख्या 300-350 से ऊपर है और ये [[नागपुर]] तक फैले हुए हैं। अधिकांश पत्र मासिक या साप्ताहिक थे। मासिक पत्रों में [[निबंध]], नवल कथा ([[उपन्यास]]), वार्ता आदि के रूप में कुछ अधिक स्थायी संपत्ति रहती थी, परंतुपरन्तु अधिकांश पत्र 10-15 पृष्ठों से अधिक नहीं जाते थे और उन्हें हम आज के शब्दों में "विचारपत्र" ही कह सकते हैं। साप्ताहिक पत्रों में समाचारों और उनपर टिप्पणियों का भी महत्वपूर्ण स्थान था। वास्तव में दैनिक समाचार के प्रति उस समय विशेष आग्रह नहीं था और कदाचित् इसीलिए उन दिनों साप्ताहिक और मासिक पत्र कहीं अधिक महत्वपूर्ण थे। उन्होंने जनजागरण में अत्यंत महत्वपूर्ण भाग लिया था।
 
उन्नीसवीं शताब्दी के इन 25 वर्षों का आदर्श भारतेन्दु की पत्रकारिता थी। "[[कविवचनसुधा]]" (1867), "हरिश्चंद्र मैगजीन" (1874), श्री हरिश्चंद्र चंद्रिका" (1874), बालबोधिनी (स्त्रीजन की पत्रिकपत्रिका, 1874) के रूप में भारतेन्दु ने इस दिशा में पथप्रदर्शन किया था। उनकी टीकाटिप्पणियों से अधिकरी तक घबराते थे और "कविवचनसुधा" के "पंच" पर रुष्ट होकर काशी के मजिस्ट्रेट ने भारतेन्दु के पत्रों को शिक्षा विभाग के लिए लेना भी बंद करा दिया था। इसमें संदेह नहीं कि पत्रकारिता के क्षेत्र भी भारतेन्दु पूर्णतया निर्भीक थे और उन्होंने नए नए पत्रों के लिए प्रोत्साहन दिया। "हिंदी प्रदीप", "भारतजीवन" आदि अनेक पत्रों का नामकरण भी उन्होंने ही किया था। उनके युग के सभी पत्रकार उन्हें अग्रणी मानते थे।
 
== भारतेन्दु के बाद ==