"प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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→‎मूर्त संक्रियात्मक अवस्था: जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास तीसरी अवस्था का नाम मूर्त संक्रियात्मक अवस्था दिया था।
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इस अवस्था में अनुक्रमणशीलता पायी जाती है। इस अवस्था मे बालक के अनुकरणो मे परिपक्वता आ जाती है
 
=== अमूर्तमूर्त संक्रियात्मक अवस्था ===
इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रांरभ कर लेता है एवं वस्तुओं एव घटनाओं के बीच समानता, भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन हो जाती है इस अवस्था में बालकों में संख्या बोध, वर्गीकरण, क्रमानुसार व्यवस्था किसी भी वस्तु ,व्यक्ति के मध्य पारस्परिक संबंध का ज्ञान हो जाता है। वह तर्क कर सकता है। संक्षेप में वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूल करने के लिये अनेक नियम को सीख लेता है।