"पिंजर (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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'''पिंजर'''
== संक्षेप ==
यह कहानी 1947 के विभाजन के समय की है।
कुछ ही महीनों के बाद पूरो का परिवार रज्जो की शादी रामचंद के चचेरे भाई से करा देते हैं और रामचंद की छोटी बहन, लाजो की शादी उनके पुत्र त्रिलोक से। इस बीच रशीद पूरो जिसका नाम अब हमीदा है से निकाह कर लेता है और वे सड़क पर मिले एक बच्चे को अपना कर उसे बहुत स्नेह और प्यार से पालते हैं। जब गांव के लोगों को पता चलता है कि बच्चा हिन्दू पृष्ठभूमि से है तो वे उसे दोनों से दूर ले जाते हैं। ब्रिटिश सरकार भारत छोड़ जाती है और भारत विभाजन के प्रभाव से जूझ रहा होता है। रामचंद के चाचा, चचेरे भाई और रज्जो भारत के लिए पहले निकल जाते हैं और सुरक्षित हैं। रामचंद और उसके माता पिता और लाजो दंगों में फंस जाते हैं। रामचंद के पिता पहले से ही गायब हैं और रामचंद तुरंत अपनी छोटी बहन लाजो और माँ के साथ भारत के लिए निकल जाता है। कुछ ही समय बाद, गुंडे लाजो का अपहरण कर लेते हैं। पूरो रामचंद से मिलती है, जो उसे लाजो का दुखड़ा सुनाता है। पूरो लाजो का पता ढूंढती है और उसे रशीद की सहायता से भागने में मदद करती है। वे उसे लाहौर ले जाते हैं जहाँ त्रिलोक और रामचंद उसे लेने के लिए आते हैं।▼
त्रिलोक और उसकी बहन पूरो का पुर्नमिलन होता है और वह उसे बताता है कि रामचंद अब भी उसे स्वीकार करने के लिए तैयार है और वह नए सिरे से जिंदगी शुरू कर सकती है। पूरो मना करके उसे आश्चर्यचकित कर देती है और कहती है कि वह वहीं है जहाँ उसे होना चाहिये। यह देखकर कि पूरो ने रशीद को स्वीकार कर लिया है, रामचंद पूरो को जबरदस्त सहानुभूति के साथ बढ़ावा देता है। पूरो को अपने लोगों के साथ आसानी से छोड़ने के लिए
▲यह कहानी 1947 के विभाजन के समय की है। पिञर पूरो की कहानी है, जो अपने परिवार के साथ एक सुंदर जीवन जी रही होती है। पूरो का रिश्ता एक प्यारा जवान लड़का, रामचन्द, के साथ तय हो जाता है जो एक होनहार परिवार से है। पूरो की खुशियाँ तब बिखर जाती है जब वह अपनी छोटी बहन रज्जो के साथ एक इत्मीनान यात्रा पर जाती है और एक रहस्यमय मुस्लिम आदमी, रशीद, उसका अपहरण कर लेता है। रशीद के परिवार और पूरो के परिवार के बीच एक पुश्तैनी विवाद है। पूरो के परिवार ने रशीद के परिवार की संपत्ति लेकर उन्हे बेघर कर दिया था। और तो और पूरो के भव्य चाचा ने रशीद की भव्य चाची का अपहरण कर लिया और फिर उसे अपवित्र कर के उसे छोड़ दिया था। रशीद के परिवार ने उसे वह बदला चुकाने के लिये पूरो का अपहरण करने कि कसम खिलायी थी।
== मुख्य कलाकार ==▼
* [[उर्मिला मातोंडकर]] - पूरो/हमीदा
* [[मनोज बाजपेयी]] - रशीद
* [[संजय सूरी]]- रामचंद
* [[ईशा कोपिकर]] - रज्जो
* [[लिलेट दुबे]]
* [[कुलभूषण खरबंदा]] - मोहनलाल
* [[फरीदा ज़लाल]]
* [[आलोक नाथ]] - श्यामलाल
* [[दीना पाठक]] - रहीम की आंटी
* समर जय सिंह
== दल ==
▲ब्रिटिश सरकार भारत छोड़ जाती है और भारत विभाजन के प्रभाव से जूझ रहा होता है। रामचंद के चाचा, चचेरे भाई और रज्जो भारत के लिए पहले निकल जाते हैं और सुरक्षित हैं। रामचंद और उसके माता पिता और लाजो दंगों में फंस जाते हैं। रामचंद के पिता पहले से ही गायब हैं और रामचंद तुरंत अपनी छोटी बहन लाजो और माँ के साथ भारत के लिए निकल जाता है। कुछ ही समय बाद, गुंडे लाजो का अपहरण कर लेते हैं। पूरो रामचंद से मिलती है, जो उसे लाजो का दुखड़ा सुनाता है। पूरो लाजो का पता ढूंढती है और उसे रशीद की सहायता से भागने में मदद करती है। वे उसे लाहौर ले जाते हैं जहाँ त्रिलोक और रामचंद उसे लेने के लिए आते हैं।
== संगीत ==
== रोचक तथ्य ==
== परिणाम ==
=== बौक्स ऑफिस ===
=== समीक्षाएँ ===
== नामांकन और पुरस्कार ==▼
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▲त्रिलोक और उसकी बहन पूरो का पुर्नमिलन होता है और वह उसे बताता है कि रामचंद अब भी उसे स्वीकार करने के लिए तैयार है और वह नए सिरे से जिंदगी शुरू कर सकती है। पूरो मना करके उसे आश्चर्यचकित कर देती है और कहती है कि वह वहीं है जहाँ उसे होना चाहिये। यह देखकर कि पूरो ने रशीद को स्वीकार कर लिया है, रामचंद पूरो को जबरदस्त सहानुभूति के साथ बढ़ावा देता है। पूरो को अपने लोगों के साथ आसानी से छोड़ने के लिए राशिद धीरे-धीरे गायब होने की कोशिश करता है, लेकिन उसका दिल टूट जाता है क्योंकि वह उसे दिलो-जान से चाहता है। फिर भी पूरो रशीद को ढूँढ लेती है और दोनों डबडबाई आँखों से हमेशा के लिए रामचंद, त्रिलोक और लाजो को विदा कर देते हैं।
▲== कलाकार ==
▲* पगली : सीमा बिस्वास
▲* रहीम की माँ : सुधा शिवपुरी
▲== पुरस्कार ==
▲== बाहरी कड़ीयाँ==
[[श्रेणी:2003 में बनी हिन्दी फ़िल्म]]
[[श्रेणी:भारत के विभाजन पर आधारित साहित्य]]
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