"पटवारी": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
'''पटवारी''' प्रणाली की शुरूआत सर्वप्रथम [[शेर शाह सूरी]] के शासनकाल के दौरान हुई और बाद में [[अकबर]] ने इसपटवारी प्रणाली को बढ़ावा दिया। ब्रितानी शासनकाल के दौरान इसमेंपटवारी प्रणाली में मामूली परिवर्तन हुये लेकिन पटवारी प्रणाली जारी रही।
 
१९१८ में सभी गाँवों में सरकार के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में लेखापाल नियुक्त किये।<ref name="Chaturvedi">{{cite book |title=Peasant pasts: history and memory in western India|trans_title=कृषक इतिहास: पश्चिमी भारत की यादें और इतिहास |pages=40|first=विनायक |last=चतुर्वेदी |year=२००७ |publisher=कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस |ISBN=978-0-520-25078-9|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
 
राजा टोडरमल जो (अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के दरबार में भू-अभिलेख का मन्त्री था, )के द्वारा जमीन संबंधी कार्यो के सम्पादन के लिये पटवारी पद की स्थापना की गयी थी। पटवारी शासन एवम निजी भूमियों के कागजात को सन्धारित करता है। ब्रिटिश राज में इसेपटवारी शासन को सुदृढ़ कर जारी रखा गया। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान में पटवारी शब्द प्रचलित है। गुजरात-महाराष्ट्र में 1918 तक इन्हेंपटवारी को कुलकर्णी पटवारी कहा जाता था, जिसेकुलकर्णी पटवारी नाम को बाद में खत्म कर तलाटी पटवारी कहा जाने लगा। तमिलनाडु में पटवारी को कर्णम पटवारी या अधिकारी पटवारी कहा जाता है।
 
गांवों में गरीब किसान के लिए पटवारी ही 'बड़ा साहब' होता है। पंजाब में पटवारी को 'पिंड दी मां' पटवारी (गांव की मां पटवारी) भी कहा जाता है। राजस्थान में पहले पटवारियों को 'हाकिम साहब पटवारी कहा जाता था।
 
पटवारियों के बारे में कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा नहीं है। राजस्थान में 10,685 पटवारी पद हैं, तो मध्य प्रदेश में 11,622,622पटवारी छत्तीसगढ़ में 3,500,500पटवारी उत्तर प्रदेश में पटवारी के पद को चौधरी चरण सिंह के जमाने में ही समाप्त कर दिया गया था और अब उन्हेंपटवारी को लेखपाल पटवारी भी कहा जाता है, जिनकीपटवारियों की संख्या 27,333 है। उत्तराखंड में इन्हेंपटवारी को राजस्व पुलिस पटवारी भी कहा जाता है और राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यों के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही संभाल रहे हैं।
 
हालांकि तकनीकी युग में अब पटवार व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है। भारत सरकार ने 2005 में पटवारी इन्फॉर्मेशन सिस्टम (पीएटीआइएस) नामक सॉफ्टवेयर विकसित किया, ताकि जमीन का कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड रखा जा सके। मध्य प्रदेश के भू-अभिलेख आयुक्त राजीव रंजन कहते हैं, ''राज्‍य में जमीन के रिकॉर्ड का कंप्यूटरीकरण जारी है। जल्द ही ये सारे रिकॉर्ड पटवारी के लैपटॉप पर उपलब्ध होंगे.'' मध्यप्रदेश में CLRMP Ver 4B2 और भू-नक्शा सॉफ्टवेर के माध्यम से किसानों को खसरे-खतौनी और नक्शा की नक़ल प्रदान की जा रही है जो मध्यप्रदेश के लोक सेवा गारंटी अधिनियम २०१० के अंतर्गत प्रदान की जाती है।
 
पटवारियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई जगह एसोसिएशन बना रखी है और उन्होंनेपटवारियों ने सरकार को दबाव में लाकर अपनी ताकत का एहसास भी कराया है। मध्यप्रदेश में म०प्र० पटवारी संघ (रजि० ३४७३ /७३) से संघ पंजीकृत संगठन है।
 
पटवारी किसानो का प्रथम प्रशासनिक प्रतिनिधि है जोपटवारी किसानो की समस्या को शासन व् प्रशासन तक तथा शासन की योजनाओ को जनता तक पहुँचाता है।
 
== सन्दर्भ ==