"दयानन्द सरस्वती": अवतरणों में अंतर
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== ज्ञान की खोज ==
फाल्गुन कृष्ण संवत् १८९५ में [[शिवरात्रि]] के दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया। उन्हें नया बोध हुआ। वे घर से निकल पड़े और यात्रा करते हुए वह गुरु
उन्होंने आशीर्वाद दिया कि ईश्वर उनके पुरुषार्थ को सफल करे। उन्होंने अंतिम शिक्षा दी -मनुष्यकृत ग्रंथों में ईश्वर और ऋषियों की निंदा है, ऋषिकृत ग्रंथों में नहीं। [[वेद]] प्रमाण हैं। इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना।
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