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अनुवाद दशा में पहला सार्थक प्रयास एच. एच. विल्सन ने १८५५ में ‘ग्लोरी ऑफ़ ज्यूडिशियल एंड रेवेन्यू टर्म्स' के द्वारा किया। सन् १९६१ में राजभाषा विधायी आयोग की स्थापना हुई। इसका काम अखिल भारतीय मानक विधि शब्दावली तैयार करना था। १९७० में विधि शब्दावली का प्रकाशन हुआ। इसका परिवर्धन होता आ रहा हे। इसका नवीन संस्करण १९८४ में निकला। इस आयोग ने कानून संबंधी अनेक ग्रंथो का अनुवाद किया हे। कई न्यायालयों में न्यायाधीश हिंदी में भी निर्णय देने लगे है।
 
== अनुवाद की परम्परा ==
अनुवाद की परम्परा बहुत पुरानी है । [[बाबल का मीनार|बेबल के मीनार]] (Tower of Babel) की कथा प्रसिद्ध ही है, जो इस तथ्य की ओर सङ्केत करती है कि, मानव समाज में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। यह तर्कसङ्गत रूप से अनुमान किया जा सकता है कि पारस्परिक सम्पर्क की सामाजिक अनिवार्यता के कारण अनुवाद व्यवहार का जन्म भी बहुत पहले हो गया होगा। परन्तु जहाँ तक लिखित प्रमाणों का सम्बन्ध है,
 
* अनुवाद परम्परा के आरम्भिक बिन्दु का प्रमाण ईसा से तीन सहस्र वर्ष पहले प्राचीन मिस्र के राज्य में, द्विभाषिक शिलालेखों के रूप में मिलता है ।
* तत्पश्चात् ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व [[रोमन साम्राज्य|रोमन]] लोगों के [[ग्रीक]] लोगों के सम्पर्क में आने पर [[ग्रीक भाषा|ग्रीक]] से [[लातिन भाषा|लैटिन]] में अनुवाद हुए ।
* बारहवीं शताब्दी में [[स्पेन]] में [[इस्लाम]] के साथ सम्पर्क होने पर यूरोपीय भाषाओं में [[अरबी]] से अनुवाद हुए।
 
बृहत् स्तर पर अनुवाद तभी होता है, जब दो भिन्न भाषाभाषी समुदायों में दीर्घकाल पर्यन्त सम्पर्क बना रहे तथा उसे सन्तुलित करने के प्रयास के अन्तर्गत अल्प विकसित संस्कृति के लोग सुविकसित संस्कृति के लोगों के साहित्य का अनुवाद कर अपने साहित्य को समृद्ध करें । ग्रीक से लैटिन में और अरबी से यूरोपीय भाषाओं में प्रचर अनुवाद इसी प्रवृत्ति के परिणाम माने जाते हैं। अनुवाद कार्य को इतिहास की प्रवृत्तियों की दृष्टि से दो भागों में विभाजित किजा जाता है - प्राचीन और आधुनिक।
 
=== प्राचीन परम्परा ===
प्राचीन युग में मुख्यतः तीन प्रकार की रचनाओँ के अनुवाद प्राप्त होते हैं। क्योंकि इन तीन क्षेत्रों में ही प्रायः ग्रन्थों की रचना होती थी। वें क्षेत्र हैं - साहित्य, दर्शन और धर्म। साहित्यिक रचनाओं में ग्रीक के [[इलियड]] और [[ओडेसी]], [[संस्कृत]] के [[रामायण]] और [[महाभारत]] ऐसे ग्रन्थ हैं, जिनका व्यापक स्तर अनुवाद हुआ। दार्शनिक रचनाओं में [[प्लेटो]] के संवाद, अनुवाद की दृष्टि से लोकप्रिय हुए। धार्मिक रचनाओं में बाइबिल के सबसे अधिक अनुवाद पाए जाते हैं।
 
=== आधुनिक परम्परा ===
आधुनिक युग में अनुवाद के माध्यम से प्राचीन युग के ये महान ग्रन्थ अब विभिन्न भाषा भाषियों को उपलब्ध होने लगे हैं। अनुवाद तकनीक की दृष्टि से इन अनुवादों की विशेषता यह है कि, प्राचीन युग में ये अनुवाद विशेष रूप से एकपक्षीय रूप में होते थे अर्थात् जिस भाषा में अनुवाद किए जाते थे (= लक्ष्यभाषा) उनसे उनकी किसी रचना का मूल ग्रन्थ भाषा (= मूलभाषा या स्रोत भाषा) में अनुवाद नहीं होता था । इसका कारण यह कि मूल ग्रन्थों की तुलना में लक्ष्यभाषा के ग्रन्थ प्रायः उतने उत्कृष्ट नहीं होते थे, दूसरी बात यह कि मूल ग्रथों की भाषा के प्रति अत्यन्त आदर भावना के कारण लक्ष्य भाषा के रूप में प्रयोग में लाना सम्भवतः अनुचित समझा जाता था।
 
आधुनिक युग में अनुवाद का क्षेत्र विस्तृत हो गया है । उपर्युक्त तीन के अतिरि [[विज्ञान]], [[प्रौद्योगिकी]], [[चिकित्साशास्त्र]], [[प्रशासन]], [[राजनय|कूटनीति]], [[विधिशास्त्र|विधि]], [[जनसंपर्क|जनसम्पर्क]] ([[भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची|समाचार पत्र]] इत्यादि) तथा अन्य अनेक क्षेत्रों के ग्रन्थों और रचनाओं का अनवाद भी होने लगा है । प्राचीन युग के अनुवादों की तुलना में आधुनिक युग के अनुवाद द्विपक्षीय (बहुपक्षीय) रूप में होते हैं । आधुनिक युग में अनुवाद का आर्थिक और राजनीतिक महत्त्व भी प्रतिष्ठित हो गया है । विभिन्न राष्ट्रों के मध्य राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अनुबन्धों के प्रपत्र के द्विभाषिक पाठ तैयार किए जाते हैं । बहुराष्ट्रीय संस्थाओं को एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करना पड़ता है । [[संयुक्त राष्ट्र]] में प्रत्येक कार्य पाँच या छः भाषाओं में किया जाता है। इन सब में अनिवार्य रूप से अनुवाद की आवश्यकता होती है।
 
इस स्थिति का औचित्य भी है । आधुनिक युग में हुई औद्योगिक, प्रौद्योगिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रान्ति के फलस्वरूप विश्व के राष्ट्रों में एक-दूसरे के निकट सम्पर्क की आवश्यकता की चेतना का अतीव शीघ्र विकास हुआ, उसके कारण अनुवाद को यह महत्त्व मिलना स्वाभाविक माना जाता है। यही कारण है कि यदि प्राचीन युग की प्रेरक शक्ति अनुवादक की व्यक्तिगत रुचि अधिक थी, तो आधुनिक युग में अनुवाद की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक आवश्यकता एक प्रबल प्रेरक शक्ति बनकर सामने आई है। इस स्थिति के अनेक उदाहरण मिलते हैं । भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग के लेखकों की रचनाएँ दूसरी भाषाओं में अनूदित होकर अधिक पढ़ी जाती हैं । अपेक्षाकृत छोटे तथा बहुभाषी राष्ट्रों को अपने देश के भीतर ही विभिन्न भाषाभाषी समुदायों के मध्य सम्पर्क स्थापित करने की समस्या का सामना करना पड़ता है ।
 
सामाजिक आवश्यकता के अनुरूप अनुवाद के इस महत्त्व के कारण अनुवाद कार्य अब संगठित रूप से होता देखा जाता है। राजनीतिक-आर्थिक कारणों से उत्पन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुवाद अब एक व्यवसाय बन चुका है तथा व्यक्तिगत होने के साथ-साथ उसका संगठनात्मक रूप भी प्रतिष्ठित होता दिखता है । अनुवाद कौशल को सिखाने के लिए शिक्षा संस्थाओं में प्रबन्ध किए जाते हैं तथा स्वतन्त्र रूप से भी प्रशिक्षण संस्थान काम करते हैं ।
 
== व्याख्याएँ ==