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इस केन्द्रीय स्थिति के दो छोर हैं। प्रथम छोर पर दोनों स्थितियों में भाषाबद्धता रहती है, परन्तु भाषा वही रहती है। स्थितियों को अन्तर उसी भाषा के भेदों के अन्तर पर आधारित होता है। यह समभाषिक अनुवाद है। पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग की स्पष्टता के लिए इसे 'अन्वयान्तर' या 'शब्दान्तरण' कहा जाता है। दूसर छोर पर भाषेतर संकेत का भाषिक संकेत में परिवर्तन होता है। संकेत पद्धति का यह परिवर्तन भाषा प्रयोग की सामान्य स्थिति को जन्म देता है। पारिभाषिक शब्दावली में इसे 'भाषा व्यवहार' कहा जाता है। इन तीनों (समभाषिक अनुवाद, अन्यभाषिक अनुवाद, और अन्तरसंकेतपरक अनुवाद) में सम्बन्ध तथा अन्तर दोनों हैं। यह सम्बन्ध उभयनिष्ठ है।
अनुवाद (अन्यभाषिक अनुवाद) की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वास्तविक अनुवाद कार्य में तथा
=== प्रवृत्तिमूलक अर्थ ===
सैद्धान्तिक दृष्टि से अनुवाद एक सम्बन्ध है जो दो या दो से अधिक, परन्तु विभिन्न भाषाओं के पाठों के मध्य होता है; परन्तु वे समानार्थक होने चाहिये।
इस सम्बन्ध का उद्घाटन तुलनात्मक पद्धति के अध्ययन से किया जाता है। इन दोनों का समन्वित रूप इस धारणा में मिलता है कि अनुवाद एक निष्पत्ति है - कार्य का परिणाम अनुवाद है - जो अपने मूल पाठ से पर्यायता के सम्बन्ध से जुड़ा है। निष्पत्ति के रूप में अनुवाद को '
अनुवाद को अनुप्रयुक्त [[भाषाविज्ञान]] की शाखा कहा गया है। वस्तुतः, अपने इस रूप में यह अपने प्रक्रिया रूप तथा सम्बन्ध रूप परिभाषाओं की योजक कड़ी है, जिसका संक्रियात्मक आधार
(१) अनुवाद एक भाषा या भाषाभेद से दूसरी भाषा या भाषा भेद में होता है।
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