मुअनजो-दड़ोमोहन जोदड़ो की इमारतें भले ही खंडहरों में बदल चुकी हों परंतु शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिये ये खंडहर काफीकाफ़ी हैं। यहाँ की सड़कें ग्रिड प्लानयोजना की तरह हैं मतलब आड़ी-सीधी हैं।
पूरब की बस्तियाँ “रईसों की बस्ती” हैहैं, क्योंकि यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मुअनजो-दड़ोमोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनोदोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मुअनजो-दड़ोमोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। इतिहासकारों का कहना है कि मुअनजो-दड़ोमोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। मुअनजो-दड़ो में करीब ७०० कुएँ थे। यहाँ किकी बेजोड़ पानी-निकासी, कुएँ, कुंड, और नदीयों को देखकर हम यह कह सकते हैं कि मुअनजो-दड़ोमोहन जोदड़ो सभ्यता असल मायने में जल-संस्कृति थी।
पुरातत्त्वशास्त्री काशीनाथ दीक्षित के नाम पर यहाँ “डीके-जी” हलका है, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नर्तकी” शिल्प खुदाई के समय मिला। यह मूर्ति अब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है।▼
▲[[पुरातत्त्वशास्त्री]] [[काशीनाथ दीक्षित]] के नामनामकरण परके अनुसार यहाँ “डीके-जी” हलकापरिसर हैहैं, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नर्तकी”“नृतकी” शिल्प खुदाई के समय मिला।प्राप्त हुई। यह मूर्ति अब [[दिल्ली]] के [[राष्ट्रीय संग्रहालय]] में है।