"प्राण": अवतरणों में अंतर
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== वेदों में प्राण ==
वेदों में प्राणतत्व की महिमा का गान करते हुए उसे विश्व की सर्वोपरि शक्ति माना है।
प्राणों विराट प्राणो देष्ट्री प्राणं सर्व उपासते। प्राणो ह सूर्यश्चन्द्रमाः प्राण माहुः प्रजापतिम्॥ -[[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]]
अर्थात्- प्राण विराट है, सबका प्रेरक है। इसी से सब उसकी उपासना करते हैं। प्राण ही सूर्य, चन्द्र और प्रजापति है।
प्राणाय नमो यस्य सर्व मिदं वशे। यो भूतः सर्वस्येश्वरो यस्मिन् सर्व प्रतिष्ठम्। -अथर्ववेद
अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।
== सन्दर्भ ==
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