"प्राण": अवतरणों में अंतर

प्रतिलिपित→‎उपनिषदों में
पंक्ति 21:
अर्थात्- जिसके अधीन यह सारा जगत है, उस प्राण को नमस्कार है। वही सबका स्वामी है, उसी में सारा जगत प्रतिष्ठित है।
 
===== ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में =====
ब्राह्मण ग्रंथों और आरण्यकों में भी प्राण की महत्ता का गान एक स्वर से किया गया है- उसे ही विश्व का आदि निर्माण, सबमें व्यापक और पोषक माना है। जो कुछ भी हलचल इस जगत में दृष्टिगोचर होती है उसका मूल हेतु प्राण ही है।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/प्राण" से प्राप्त