"अकबर शाह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:18वीं सदी में जन्मे लोग]]
 
 
अकबर प्रथम एवं अकबर द्वितीय
(तुलनात्मक संक्षिप्त जानकारी)
कई इतिहास एवं साहित्य की पुस्तकों मे कुछ ऐसे लेख पढ़ने को मिलें है जो गलत मान्यताओं पर आधारित और भ्रामक होते है तथा परम्परा के से ये जनश्रुति के रूप मे चलते रहते है।
यहीं बात लागू होती है अकबर के जन्म के संम्बंध मे।इतिहास मे दो अकबर होने के कारण भ्रम वश गलत तथ्यों का उल्लेख हुआ उसका विवरण निम्नानुसार है--
(1) पुस्तक "रीवा राज्य का इतिहास" लेखक रामप्यारे अग्निहोत्री ने इस किताब के पृष्ठ 47-48 मे अकबर प्रथम का जन्म मुकुन्दपुर की गढ़ी मे राजा वीरभानु के आश्रय मे होना सिद्ध किया है।
(2)अग्रेज इतिहासकार कनिंघम ने सन् 1870-80 के मध्य भारत भ्रमण कर :" आर्केलजिकल सर्वे रिपोर्ट आफ इंडिया " प्रकाशित कराई, इस पुस्तक के पृष्ट 109 पर उल्लेख किया कि जब हुमाऊ की बेगम शेरशाह के संघर्ष मे छूट गई तब वीरभानु ने बहन मानकर अपने यहाँ शरण दी।
(3) रीवा राजा विश्वनाथ सिंह के दरबारी कवि ' अजवेश ' की कवित्त - बाढ़ी बादशाही जैसे प्रलय मे सलिल बाढ्यो
राना राव उमराव सबको निपात भो
बेगम बिचारी बही कतहू न थाह लही
बाँधोगढ़ गाढ़ो गूढ़ ताको पक्षपात भो
शेरशाह सलिल प्रलै को बढ्यो अजबेश
बूड़त हुमाऊ को बड़ो उत्पात भो
बलहीन बालक अकबर बचाइबे को
वीरभानु भूपति अक्षय वट को पात भो
(4) तवारीख बघेल खण्ड के लेखक मौलवी रहमान अली ने भी लिखा है कि हुमाऊ की गर्भवती बेगम को राजा वीरभानु ने बांधवगढ़ मे बहुत सम्मान के साथ रखा।
यहीं आधार मानकर यादवेन्द्र सिंह ने भी इसी तरह की बात अपने रीवा राज्य का इतिहास पुस्तक मे लिखा है।
उपर्युक्त सभी ऐतिहासिक तथ्य गलत मान्यताओं पर आधारित ओर भ्रामक हैं।
शेरशाह सूरी और हुमाऊ के बीच अंतिम निर्णायक युद्ध सन् 17 मई सन् 1540 को बिलग्राम ( कन्नौज) मे हुआ था और इस युद्ध मे हुमाऊ पराजित होकर, जान बचाकर भागा । यह सही है कि जब हुमाऊ यमुना की बाढ़ी नदी के तट पर पहुँचा तो पार उतरने के लिए घबड़ाया तब राजा बीरभानु ने पाँच छ सैनिकों के साथ पहुँचकर उसे नदी पार कराया और रसद( खाने की सामग्री) उपलव्ध कराई। इस घटना के समय उसकी शादी हमीदा बानू के साथ हुई ही नही थी अतः यह कहना पूर्णतः गलत है कि उसकी गर्भवती बेगम उसके साथ थी। जब हुमाऊ शेरशाह से पराजित होकर सिंध प्रान्त गया तब वहीं पर इसकी शादी 29 अगस्त सन् 1541 को शिया अध्यापक की बेटी हमीदा बानू के साथ हुआ। हुमाऊ की शादी शेरशाह से परजित होने के बाद हुई अतः उसके साथ उसके बेगम के होने का कोई सबाल ही नही उठता।
हुमाऊ की बहन गुलबदन ने अपनी किताब हुमाऊनामा मे तथा वीरभानु के राज कवि माधव ने भी अपने ग्रंथ " वीरभानुदय" काव्य मे ऐसा कुछ भी नही लिखा कि वीरभानु ने हमीदाबानू को बांधवगढ़ के किला मे रखा। यह तथ्य पूर्णतः असत्य , काल्पनिक और भ्रामक है।
दोनो अकबर का तुलनात्मक तथ्य इस प्रकार है-
(1) अकबर प्रथम के पिता का नाम हुमाऊ तथा माता का नाम हमीदाबानू बेगम है जबकि अकबर द्वितीय के पिता का नाम शाहआलम एवं माता का नाम मुबारक महल उर्फ लालबाई है।
(2) अकबर प्रथम का जन्म 15 अक्टूबर सन् 1542 मे सिंध प्रान्त के हिन्दू राजा वीरसाल के आश्रय और संरक्षण मे अमरकोट के किला मे हुआ जबकि अकबर द्वितीय का जन्म 17 अप्रैल सन् 1759 मे हिन्दू रीवा बघेल राजा अजीत सिंह के आश्रय एवं संरक्षण मे मुकुन्दपुर की गढ़ी मे हुआ।
(3) अकबर प्रथम का जन्म उस समय हुआ जब उसका पिता हुमाऊ शेरशाह से पराजित होकर सिंध प्रान्त की ओर पलायन किया था जबकि अकबर द्वितीय का जन्म उस समय हुआ जब उसका पिता शाहआलम अग्रेज सेनापति लार्ड क्लाइव से परजित होकर रीवा राज्य की ओर पलायन किया था।
जिन विषम संकटकालीन राजनीतिक परिस्थियों मे अकबर प्रथम का जन्म हुआ था ऐसी ही विकट परिस्थियों मे अकबर द्वितीय का जन्म मुकुन्दपुर की गढ़ी मे हुआ उसका नाम भी अकबर रखा गयाऔर इसी कारण इसे अकबर द्वितीय कहा गया---- सीताशरण गुप्त, मुकुन्दपुर
 
 
 
 
 
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मुकुन्दपुर की गढ़ी और दिल्ली का सत्ता सम्बंध दिनांकः-
जिस मुगल बादशाह अकबर द्वितीय का जन्म मुकुन्दपुर की गढ़ी मे सन् 1759 मे हुआ था , उस गढ़ी का निर्माण रीवा राज्य के बघेल महाराजा अमर सिंह ने सन् 1624 से 1630 के मध्य लगभग दो एकड़ के क्षेत्र मे एक ऊँचे स्थान पर कराया था। इस गढ़ी की मरम्मत अमर सिंह के पौत्र राजा भाव सिंह ने भी कराया था तथा गढ़ी के परकोटे के अन्दर जगन्नाथ स्वामी मंदिर का निर्माण कराया। इस गढी मे सन् 1803 - 04 मे अग्रेजों ने अपने सैनिकों की एक प्रशिक्षित टुकड़ी भी रखी थी। इस गढ़ी को रीवा महाराजाओं ने उपराजधानी का रूप प्रदान किया था।
वे यहाँ पर शासन तंत्र के साथ आते और राजकीय काम काज निपटाते थे। यह बघेल राजाओं का आरामगाह भी था ये यहाँ के जंगल मे जानवरों तथा विशाल रूपसागर तालाब मे पक्षियों का शिकार खेलते थे।
सन् 1857 की क्रान्ति मे गढ़ी गिराई गईः- विन्ध क्षेत्र मे भी सन् 1854 से 1857 तक अग्रेजो के विरुद्ध क्रान्ति की आग भड़की। बघेल खण्ड के अनेक क्रान्तिकारी खाली गढ़ियों मे छुपकर गुप्त मीटिंग कर कर क्रान्ति की योजना तैयार करते थे।
उस समय रीवा राज्य के शासक महाराज रघुराज सिंह थे। अपने राज्य की रक्षा के लिए इनकी दोहरी नीति थी, एक ओर जहाँ ये बाहरी तौर पर अग्रेजी सेना को सैन्य सहायता प्रदान करते थे वहीं दूसरी ओर क्रान्तिकारियों की आन्तरिक रूप से मदद करते थे। उस समय बिहार के क्रान्तिकारी बाबू कुँवर सिह क्रान्ति का मशाल लेकर रीवा राज्य मे प्रवेश किया। यहाँ के बघेल सरदारों मे ठाकुर रणमत सिंह,श्यामशाह, धीर सिंह, पंजाब सिंह आदि देशभक्तों ने मोर्चा सम्हाला। दिल्ली की सत्ता से क्रान्ति का नेतृत्व मुकुन्दपुर मे जन्मे अकबर द्वितीय का पुत्र बहादुर शाह जफर कर रहा था। क्रान्तिकारियों ने उसे अपना सम्राट मान लिया था। उस समय मुकुन्दपुर की गढ़ी भी राजनीति का केन्द्रबिन्दु बन गई। अग्रेजों को इस बात का पता चल गया कि दिल्ली की सत्ता से क्रान्ति का नेतृत्व जो कर रहा है उसके बाप की जन्म स्थली मुकुन्दपुर की गढ़ी है और गढ़ी मे क्रान्तिकारी योजना तैयार करते एवं मोर्चा सम्हालते है। अग्रेज काफी भयभीत हो गये। उन्होने महाराजा रघुराज सिंह के पास एक सख्त आदेश भेजा कि यदि आपने अपने राज्य मे क्रान्ति का दमन नही किया,मुकुन्दपुर की गढ़ी नही गिराई तो आपको राज्य से बेदखल कर दिया जायेगा।
रघुराज सिह अग्रेजों के दबाब एवं भय के कारण तथा राज्य की रक्षा के लिए मुकुन्दपुर की गढ़ी गिरवाकर उसका मटेरियल गोविन्दगढ़ के किला को बनबाने के लिए ले गये। मुकुन्दपुर के लोगों को भी वहाँ ले जाकर बसाया। यद्यपि रघुराज सिंह ने मुगल बादशाह से सम्बंधित वह ऐतिहासिक धरोहर को नहीं गिरवाया जिसमे अकबर द्वितीय के जन्मोत्सव की छठी थी ।ये कोठरियाँ सन् 1956 तक कायम रही। दूर दूर से लोग इस छठी को देखने आते थे। छठी की कोठरियाँ 1956 मे गिराई गई है।
मध्यप्रदेश के गठन के पूर्व "विन्ध्य प्रदेश" था। 1955-56 मे जब विन्ध्य प्रदेश के उपराज्यपाल के सन्थानम मुकुन्दपुर आये तब यहाँ के स्थानीय लोगों ने 'विन्ध्येश्वरी प्रसाद दुबे उर्फ गुल्लू भइया ( जो जेलर के पद मे थे तथा मुकुन्दपुर के स्थानीय निवासी थे) के नेतृत्व मे उनसे हाई स्कूल खोलने का निवेदन किया। तब के सन्थानम ने कहा कि आप लोग स्कूल खोलने के लिए स्थान और दस हजार रुपये की राशि चंदा करके दें तो मै शासन से दुगुनी राशि स्वीकृत करा कर हाई स्कूल खुलवा दूँगा। हाई स्कूल के आश्वासन से आश्वस्वत होकर यहाँ के तत्कालीन हेडमास्टर बृजवासीलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व मे यहाँ की जनता और छात्रों ने अति उत्साह मे आकर अकबर द्वितीय की छठी वाली कोठरियों को पूरी तरह से गिरा दिया। आज अकबर द्वितीय की छठी की कोठरियों के स्थान पर तीस बेड का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की बिल्डिंग खड़ी है।
-- सीताशरण गुप्त, मुकुन्दपुर
 
 
 
 
🚫दिल्ली जाती थी मुकुन्दपुर की जमा🛇
 
जब बादशाह अकबर द्वितीय का जन्म मुकुन्दपुर की गढ़ी मे हुआ तब उस समय के रीवा राज्य के बघेल राजा अजीत सिंह ने मुकुन्दपुर मौजा की जमा उसके खर्च के लिए लगा दी थी।
यह जमा वर्ष मे दो बार अगहनी और बैसाखी दिल्ली भेजने का सिलसिला राजा अजीत सिंह, तथा उसके बाद उनके उत्तराधिकारी जय सिंह(1809-1833), विश्वनाथ सिंह(1833-1854) एवं रघुराज सिंह के जमाने मे भी जारी रहा।
अजीत सिंह के जमाने मे यह जमा पटना घराने के मल्लशाह कर्चुली लेकर जाते थे। ये बहुत ही दबंग और इज्जतदार व्यक्ति थे। इनकी शाख इतनी मजबूत थी कि इनके मेछा के बाल गहन रखे जाते थे। ये वीर क्षत्रिय थे। राजकीय सेवा के बदले मुकुन्दपुर से 12 किलोमीटर दक्षिण ताला ग्राम इन्हे पवाई मे दिया गया था।
राजा विश्वनाथ सिंह के जमाने मे बादशाह की तरफ से जमा वसूल करने के लिए एक अहिरिन दीवान मुकर्रर हुई थी जो घोड़े मे चढ़कर निकलती थी,उसका नाम आलम अली बेग था वह मर्दाना वेश मे रहती दी।उसे दीवानी और फौजदारी के सख्त अधिकार थे। मुकुन्दपुर निवासी रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ( घिचपिच) एवं दशरथ प्रसाद तिवारी ने अपने दादा के हवाले से इस प्रकार बयान दर्ज कराया था जो मेरी डायरी मे नोट है-
" आज जहाँ हजारी गुप्ता पिता जगन्नाथ का होटल है वहाँ पहले काठ का एक बँगला था। उस बँगले मे मुकुन्दपुर के 12 गाँव की जमा बसूल करने बाली मर्दाना वेश मे एक बहुत हीं तेज तर्रार औरत ठहरती थी जो घोड़े पर चढ़कर निकलती थी।उस औरत को यहाँ के लोग कबूतरी बेगम कहते थे।"
सन् 1854-57 के बीच क्रान्ति के समय दिल्ली का बादशाह अकबर द्वितीय का बेटा बहादुर शाह जफर था। बहादुर शाह जफर ने अग्रेजो के बुरे बर्ताव से असंतुष्ट होकर क्रान्तिकारियों का साथ दिया तब अग्रेजों नाराज होकर उसे पदच्युत कर उसकी पेंशन बन्द कर दिये। इस तरह बादशाह की आर्थिक तंगी बढ़ गई। उस समय रीवा महाराजा रघुराज सिंह ने भी मुकुन्दपुर की जमा दिल्ली भेजना बंद कर दिया। तब अपने आर्थिक परेशानियों के कारण बहादुरशाह जफर ने ब्रिटिश गवर्नर जनरल को पत्र लिखकर निवेदन किया कि मेरे पिता का जन्म स्थान मुकुन्दपुर मे है। पिता के जन्म के समय राजा अजीत सिंह ने मुकुन्दपुर मौजा की जमा कलेबा के लिए लगा दिया था अतः आप रीवा महराजा से कहकर , शाहताज बाबा के मजार की दिया बत्ती का खर्च काटकर शेष जमा मेरे पास भिजवायें।
जब रीवा महाराजा रघुराज सिंह को यह संदेश प्राप्त हुआ तव उन्होने अपने सिकेट्री ( धाय भाई) बाँके सिंह के हाँथो जमा के साथ मे खाने की बहुत सी सामग्री बरी, पापड़, अचार, चार- चिरौंजी आदि भेजा। बाँके सिंह राजा जय सिंह के फौज मे भर्ती हुए थे तथा धीरे- धीरे ऊँचे ओहदे मे पहुँच गये। सिकेट्री का अपभ्रंश रूप सिकत्तर सिंह के नाम से यहाँ जाने जाते थे। ये प्रायः मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के पास गोपनीय पत्र( खरीता) लेकर दिल्ली जाया करते थे।
---- सीताशरण गुप्त , मुकुन्दपुर
 
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