"आमेर दुर्ग": अवतरणों में अंतर
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|built = १५५८-१५९२<ref>{{cite web |url= https://achhigyan.com/amer-fort-history/|title=
|materials = [[लाल बलुआ पत्थर]] [[पाषाण]] एवं [[संगमर्मर]]
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|caption2 = आमेर दुर्ग, [[जयपुर]], 1858 ई॰<br>
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|author= |last= आर्य |first= भारत|authorlink= |coauthors=
|date= मार्च २०१७|year= |month= |format= |work=
|publisher= ''इंटरनेश्नल जर्नल ऑफ मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एण्ड डवलपमेण्ट''|pages= २७३-२७५|language= |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> आमेर स्थित संघी जूथाराम मन्दिर से मिले मिर्जा राजा जयसिंह काल के [[विक्रम संवत|वि॰सं॰]] १७१४ तदनुसार १६५७ ई॰
यहाँ के अधिकांश लोग इसका मूल [[अयोध्या]] के [[इक्ष्वाकु वंश]] के राजा विष्णुभक्त भक्त [[अम्बरीष]] के नाम से जोड़ते हैं। इनकी मान्यता अनुसार अम्बरीष ने दीन-दुखियों की सहायता हेतु अपने राज्य के भण्डार खोल रखे थे। इससे राज्य में सब तरफ़ सुख और शांति तो थी परन्तु राज्य के भण्डार दिन पर दिन खाली होते गए। उनके पिता राजा [[नाभाग]] के पूछने पर अम्बरीश ने उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। तब अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य के आरोप लगाकर दोषी घोषित किया गया, किन्तु जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा लिया जाने लगा तो कर्मचारी यह देखकर विस्मित रह गए कि जो गोदाम खाली पड़े थे, वे रात रात में पुनः कैसे भर गये। अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा बताया जो उनकी भक्ति के फलस्वरूप हुआ था। इस पर उनके पिता राजा नतमस्तक हो गये। तब ईश्वर की कृपा के लिये धन्यवादस्वरूप अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना। उन्हीं के नाम से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आम्बेर" बन गया।<ref name="अभिव्यक्ति">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/paryatan/amber/amber1.htm
|title=अनोखा आकर्षण - आम्बेर|accessmonthday= |accessdate= ०६ फ़रवरी २०१८|accessmonthday= |accessdaymonth = |accessyear= |author= |last= कटरपंच
वैसे टॉड एवं कन्निंघम, दोनों ने ही अम्बिकेश्वर नामक शिव स्वरूप से इसका नाम व्युत्पन्न माना है। यह अम्बिकेश्वर शिव मूर्ति पुरानी नगरी के मध्य स्थित एक कुण्ड के समीप स्थित है। राजपूताना इतिहास में इसे कभी पुरातनकाल में बहुत से आम के वृक्ष होने के कारण आम्रदाद्री नाम भी मिल था। जगदीश सिंह गहलौत के अनुसार{{cn}} कछवाहों के इतिहास में [[राणा कुम्भ|महाराणा कुम्भ]] के समय के अभिलेख आमेर को आम्रदाद्रि नाम से ही सम्बोधित करते हैं।
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==भूगोल==
आमेर राजधानी जयपुर से
{{Cite web|url=https://www.jaipur.org.uk/forts-monuments/amber.html|title=आमेर फ़ोर्ट|accessdate=२० मार्च २०१४|publisher = जयपुर.ऑर्ग |language=अंग्रेज़ी}}</ref><ref name=Tour>{{Cite web|url=https://www.rajasthantourism.gov.in/Destinations/Jaipur/Amer.aspx |title= आमेर पैलेस [Amer Palace] |accessdate=३१ मार्च २०११|publisher= राजस्थान पर्यटन विभाग: भारत सरकार |language=अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="iloveindia">{{cite web|url=http://www.iloveindia.com/indian-monuments/amber-fort.html|title=आमेर फ़ोर्ट [[Amer Fort]] |publisher=iloveindia.com |accessdate= १४ फ़रवरी २०१८ |language=अंग्रेज़ी |archivedate=}}</ref><ref>{{Cite web|url = http://amerjaipur.in/Amer-monuments-description.php?mid=4&name=Maota%20Sarover|title = माओठा सरोवर-आमेर-जयपुर [Maota Sarover -Amer-jaipur]|date = |accessdate = २५ सितम्बर २०१५|website = http://amerjaipur.in|publisher = अगम पारीख| |language=अंग्रेज़ी}}</ref> यही सरोवर आमेर के महलों की जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत भी है। यह क्षेत्र बहुत पहले ढूंढाड़ नाम से जाना जाता था। राजस्थान के पूर्वी भाग में ढूंढ नदी बहती थी, जिस पर उससे लगे क्षेत्र का नाम ढूंढाड़ पड़ गया था। इस क्षेत्र में वर्तमान [[जयपुर जिला|जयपुर]], [[दौसा जिला|दौसा]], [[सवाई माधोपुर जिला|सवाई माधोपुर]], [[टोंक जिला|टोंक]] जिले एवं [[करौली जिला|करौली]] का उत्तरी भाग आता था।<ref>[https://www.mapsofindia.com/maps/rajasthan/rivers/jaipur.html जयपुर रिवर मैप]।मैप्स ऑफ
आमेर जयपुर नगर से लगभग लगा हुआ ही है और यहां का ऊष्म मरुस्थलीय जलवायु तथा ऊष्म अर्ध-शुष्क जलवायु का प्रभाव रहता है। "''BWh''/''BSh''",<ref>[//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/66/World_K%C3%B6ppen_Map.jpg विश्व कोप्पन मानचित्र]</ref> यहां वार्षिक वर्षा ६५० मि॰मी॰ (२६ इंच) <!--{{convert|650|mm|in}}--> होती है, किन्तु इसका अधिकांश भाग मानसून माहों, जून से सितम्बर के बीच में ही होता है। ग्रीष्मकाल में अपेक्षाकृत उच्च तापमान रहता है जिसका औसत दैनिक तापमान लगभग ३०° से॰ (८६° फ़ै॰)<!--{{convert|30|C|F}-->} होता है। मानसून काल में प्रायः भारी वर्षा आती हैं, किन्तु बाढ आदि की कोई स्थिति नहीं होती है। शीतकाल नवम्बर से फ़रवरी में अपेक्षाकृत आनन्ददायी रहते हैं। तब औसत तापमान १०-१५° से॰ (५०-५९° फ़ै॰)<!--{{convert|10|-|15|C|F}}--> तक रहता है जिसके संग सूक्ष्म या शून्य आर्द्रता रहती है। उस समय शीतलहर तापमान को जमाने की स्थिति के निकट तक ले जा सकता है। <ref>{{cite web|url=http://www.worldweather.org/066/c00531.htm|title=World Weather Information Service|accessdate=११ दिसम्बर २००९|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
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[[File:Amber1860.jpg|thumb|200px|आम्बेर दुर्ग का एक दृश्य, विलियम सिम्पसन, सं.१८६०, पानी के रंग]]
आमेर की स्थापना मूल रूप से ९६७ ई॰ में राजस्थान के मीणाओं में चन्दा वंश के राजा एलान सिंह द्वारा की गयी थी।<ref name=DNA>{{cite news|title= द फ़ॅन्टास्टिक ५ फोर्ट्स: [Rajasthan Is Home to Some Beautiful Forts, Here Are Some Must-See Heritage Structures] |language=अंग्रेज़ी|url=http://www.highbeam.com/doc/1P3-3191827171.html|accessdate=५ जुलाई २०१५|date= २८ जनवरी २०१४|publisher=डीएनए : डेली न्यूज़ एण्ड ऍनालिसिस |via=[[:w:High Beam|हाई बीम]]|subscription=yes}}</ref> वर्तमान आमेर दुर्ग जो दिखाई देता है वह आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह के शासन में पुराने किले के अवशेषों पर बनाया गया है।<ref name=Tour/><ref name="Rani2007">{{cite book|last=रानी |first=कयिता|title= रॉयल राजस्थान |url=https://books.google.com/books?id=lELRo9xARHEC&pg=PA5|accessdate=१९ अप्रैल २०११|date=नवंबर २००७|publisher= न्यू हॉलैण्ड पब्लिशर्स
===कछवाहाओं द्वारा आमेर का अधिग्रहण ===
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==अभिन्यास==
आमेर एवं [[जयगढ़ दुर्ग]] [[अरावली पर्वतमाला]] के एक पर्वत ''चील का टीला ''के ऊपर ही बने हुए हैं। असल में यह महल एवं जयगढ़ दुर्ग एक ही परिसर के भाग कहे जाते हैं एवं दोनों एक पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं। यह सुरंग गुप्त रूप से बनी थी, जिसका प्रयोजन युद्धकाल में विपरीत परिस्थिति होने पर राजवंश के लोगों को गुप्त रूप से अधिक सुरक्षित जयगढ़ दुर्ग तक पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया था।<ref name="BruynBain2010"/><ref name="iloveindia"/><ref name="Jaivan">{{Cite web|url=http://www.jaipur.org.uk/forts-monuments/jaigarh-fort.html|title=जयपुर|accessdate=१६ अप्रैल २०११ |language=अंग्रेज़ी|publisher=Jaipur.org.uk}}</ref><ref name="Ruggles2008">{{cite book|author= डी फ़ेयरचाइल्ड रग्ग्ल्स|title= इस्लामिक गार्डन्स एण्ड लैण्डस्केप्स [Islamic gardens and landscapes] |language=अंग्रेज़ी|url=https://books.google.com/books?id=PgbjhGwfXBEC&pg=PA205|accessdate= १६ अप्रैल २०११|year=२००८|publisher= पेन्नसिल्वेनिया विश्वविद्यालय प्रेस
===प्रवेश द्वार===
यह महल चार मुख्य भागों में बंटा हुआ है जिनके प्रत्येक के प्रवेशद्वार एवं प्रांगण हैं। मुख्य प्रवेश '''सूरज पोल''' द्वार से है जिससे जलेब चौक में आते हैं। जलेब चौक प्रथम मुख्य प्रांगण है तथा बहुत बड़ा बना है। इसका विस्तार लगभग १०० मी लम्बा एवं ६५ मी. चौड़ा है। प्रांगण में युद्ध में विजय पाने पर सेना का जलूस निकाला जाता था। ये जलूस राजसी परिवार की महिलायें जालीदार झरोखों से देखती थीं।<ref name="BrownThomas2008">{{cite book|author1=लिण्डसे ब्राउन |author2=अमेलिया थॉमस|title=राजस्थान, दिल्ली एण्ड आगरा [Rajasthan, Delhi & Agra]|url=https://books.google.com/books?id=Zz0_zXPb68kC&pg=PA178|accessdate= १८ अप्रैल २०११|date= १ अक्तूबर २००८ |language = अंग्रेज़ी |publisher=लोनली प्लानेट |isbn=978-1-74104-690-8|pages=१७८–}}</ref> इस द्वार पर सन्तरी तैनात रहा करते थे क्योंकि ये द्वार दुर्ग प्रवेश का मुख्य द्वार था। यह द्वार पूर्वाभिमुख था एवं इससे उगते सूर्य की किरणें दुर्ग में प्रवेश पाती थीं, अतः इसे सूरज पोल कहा जाता था। सेना के घुड़सवार आदि एवं शाही गणमान्य व्यक्ति महल में इसी द्वार से प्रवेश पाते थे।<ref name=Sun>{{Cite web|url=https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Amber_Fort_-_Suraj_Pol_-_Information_Plate.JPG |title= सूरजपोल पर सूचनापट्ट |language = द्विभाषी
जलेब चौक [[अरबी भाषा]] का एक शब्द है जिसका अर्थ है सैनिकों के एकत्रित होने का स्थान। यह आमेर महल के चार प्रमुख प्रांगणों में से एक है जिसका निर्माण सवाई जय सिंह के शासनकाल (१६९३-१७४३ ई॰) के बीच किया गया था। यहां सेना नायकों जिन्हें फ़ौज बख्शी कहते थे, उनकी कमान में महाराजा के निजी अंगरक्षकों की परेड भी आयोजित हुआ करती थीं। महाराजा उन रक्षकों की टुकड़ियों की सलामी लेते व निरीक्षण किया करते थे। इस प्रांगण के बगल में ही अस्तबल बना है, जिसके ऊपरी तल पर अंगरक्षकों के निवास स्थान थे।<ref name=Jaleb>{{Cite web|url=https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Amber_Fort_-_Jaleb_Chowk_-_Information_plate.jpg |title= जलेब चौक पर सूचनापट्ट |accessdate= १७ अप्रैल २०११ |publisher= पुरातत्त्व विभाग, राजस्थान सरकार }}</ref>
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===प्रथम प्रांगण ===
[[File:Amer Fort Entrance.jpg|300px|thumb|गणेश पोल द्वार]]
जलेबी चौक से एक शानदार सीढ़ीनुमा रास्ता महल के मुख्य प्रांगण को जाता है। यहां प्रवेश करते हुए दायीं ओर [[शिला देवी मन्दिर]] को रास्ता है। यहां राजपूत महाराजा १६वीं शताब्दी से लेकर १९८० तक पूजन किया करते थे। तब तक यहां भैंसे की बलि दी जाती थी। १९८० ई॰ से यह बलि प्रथा समाप्त कर दी गयी।<ref name="BrownThomas2008"/>
====== गणेश पोल ======
:अगला द्वार है गणेश पोल, जिसका नाम हिन्दू भगवान [[गणेश]] पर है। भगवान [[गणेश]] विघ्नहर्ता माने जाते हैं और प्रथम पूज्य भी हैं, अतः महाराजा के निजी महल का प्रारम्भ यहां से होने पर यहां उनकी प्रतिमा स्थापित है। यह एक त्रि-स्तरीय इमारत है जिसका अलंकरण मिर्ज़ा राजा जय सिंह (१६२१-१६२७ ई॰) के आदेशानुसार किया गया था। इस द्वार के ऊपर सुहाग मन्दिर है, जहां से राजवंश की महिलायें दीवान-ए-आम में आयोजित हो रहे समारोहों आदि का दर्शन झरोखों से किया करती थीं। <ref name="Jaleb1">{{Cite web|url=http://commons.wikimedia.org/wiki/File:Amer_Fort_-_Ganesh_Pol_-_Information_plate.jpg |title= गणेश पोल पर सूचनापट्ट [Information plaque on Ganesh Pol] |accessdate= १७ अप्रैल २०११ |publisher= पुरातत्त्व विभाग, राजस्थान सरकार }}{{dead link|date=July 2017 |bot=InternetArchiveBot |fix-attempted=yes }}</ref>
===शिला देवी मन्दिर ===
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जलेबी चौक के दायीं ओर एक छोटा किन्तु भव्य मन्दिर है जो कछवाहा राजपूतों की कुलदेवी [[शिला देवी|शिला माता]] को समर्पित है। शिला देवी [[काली माता]] या [[दुर्गा]] मां का ही एक अवतार हैं। मन्दिर के मुख्य प्रवेशद्वार में चांदी के पत्र से मढ़े हुए दरवाजों की जोड़ी है। इन पर उभरी हुई नवदुर्गा देवियों व दस महाविद्याओं के चित्र बने हुए हैं। मन्दिर के भीतर दोनों ओर चांदी के बने दो बड़े सिंह के बीच मुख्य देवी की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति से संबंधित कथा अनुसार महाराजा मान सिंह ने मुगल बादशाह द्वारा बंगाल के गवर्नर नियुक्त किये जाने पर [[येशोर|जेस्सोर]] के राजा को पराजित करने हेतु पूजा की थी। तब देवी ने विजय का आशीर्वाद दिया एवं स्वप्न में राजा को समुद्र के तट से शिला रूप में उनकी मूर्ति निकाल कर स्थापित करने का आदेश दिया था।<ref name="Abram2003"/><ref name="Prasad1966">{{cite book|author= राजीव नयन प्रसाद |title= आमेर के राजा मान सिंह [Raja Mān Singh of Amer]|url=https://books.google.com/books?id=FsA5AQAAIAAJ|accessdate= १८ अप्रैल २०११|year=१९६६|publisher=वर्ल्ड प्रेस |language = अंग्रेज़ी }}</ref><ref name="Babb2004">{{cite book|author= लॉरेन्स ए बॅब|title=Alchemies of violence: myths of identity and the life of trade in western India|url=https://books.google.com/books?id=74tUY0le33UC&pg=PA230|language = अंग्रेज़ी |accessdate=१९ अप्रैल २०११|date=१ जुलाई २००४|publisher=SAGE|isbn=978-0-7619-3223-9|pages= २३०-२३१}}</ref> राजा ने १६०४ में विजय मिलने पर उस शिला को सागर से निकलवाकर आमेर में देवी की मूर्ति उभरवायी तथा यहां स्थापना करवायी थी। यह मूर्ति शिला रूप में मिलने के कारण इसका नाम शिला माता पढ़ गया। मन्दिर के प्रवेशद्वार के ऊपर गणेश की मूंगे की एकाश्म मूर्ति भी स्थापित है।<ref name="BrownThomas2008"/>
एक अन्य किम्वदन्ती के अनुसार राजा मान सिंह को जेस्सोर के राजा ने पराजित होने के उपरांत
इस मन्दिर से जुड़ी एक अन्य प्रथा पशु-बलि की भी थी जो वर्ष में आने वाले दोनों [[नवरात्रि]] त्योहारों पर (शारदीय एवं चैत्रीय) की जाती थी। इस प्रथा में नवरात्रि की [[महाअष्टमी]] के दिन मन्दिर के द्वार के आगे एक भैंसे और बकरों की बलि दी जाती थी। इस प्रथा के साक्षी राजपरिवार के सभी सदस्य एवं अपार जनसमूह होता था। इस प्रथा को १९७५ ई॰ से भारतीय दंड संहिता की धारा ४२८<ref>{{Cite web|url=https://hindi.lawrato.com/इंडियन-कानून/आईपीसी/धारा-428|title=इंडियन कानून धारा 428 आईपीसी - इंडियन पीनल कोड - दस रुपए के मूल्य के जीवजन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि|publisher=lawrato.com|accessdate=२६ मार्च २०१८}}</ref> और ४२९<ref>{{Cite web|url=https://hindi.lawrato.com/इंडियन-कानून/आईपीसी/धारा-429|title=इंडियन कानून धारा 429 आईपीसी - इंडियन पीनल कोड - किसी मूल्य के ढोर, आदि को या पचास रुपए के मूल्य के किसी जीवजन्तु का वध करने या उसे विकलांग करने आदि द्वारा कुचेष्टा।|publisher=lawrato.com|accessdate=२६ मार्च २०१८}}</ref>
===द्वितीय प्रांगण ===
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===तृतीय प्रांगण ===
{{double image|left| Amber Fort interior.jpg|175|Amber Fort - Sheesh Mahal Interior.jpg |175|बायें: शीष महल में शीशों से सज्जित छत। बायें: शीष महल का आंतरिक कक्ष}}
तीसरे प्रांगण में महाराजा, उनके परिवार के सदस्यों एवं परिचरों के निजी कक्ष बने हुए हैं। इस प्रांगण का प्रवेश '''गणेश पोल''' द्वार से मिलता है। गणेश पोल पर उत्कृष्ट स्तर की चित्रकारी एवं शिल्पकारी है। इस प्रांगण में दो इमारतें एक दूसरे के आमने-सामने बनी हैं। इनके बीच में [[मुगल उद्यान]] शैली के बाग बने हुए हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर की इमारत को '''जय मन्दिर''' कहते हैं। यह महल दर्पण जड़े फलकों से बना हुआ है एवं इसकी छत पर भी बहुरंगी शीशों का उत्कृष्ट प्रयोग कर अतिसुन्दर मीनाकारी व चित्रकारी की गयी है। ये दर्पण व शीशे के टुकड़े अवतल हैं और रंगीन चमकीले धातु पत्रों से पटे हुए हैं। इस कारण से ये मोमबत्ती के प्रकाश में तेज चमकते एवं झिलमिलाते हुए दिखाई देते हैं। उस समय यहाँ मोमबत्तियों का ही प्रयोग किया जाता था। इस कारण से ही इसे '''शीश-महल''' की संज्ञा दी गयी है। यहां की दर्पण एवं रंगीन शीशों की [[पच्चीकारी]], [[मीनाकारी]] एवं रूपांकन को देखते हुए कहा गया है कि जैसे "झिलमिलाते मोमबत्ती के प्रकाश में जगमगाता आभूषण सन्दूक "।<ref name="BruynBain2010"/>
इस प्रांगण में बनी दूसरी इमारत जय मन्दिर के सामने है और इसे सुख निवास या '''सुख महल''' नाम से जाना जाता है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार [[चंदन]] की लकड़ी से बना है और इसमें जालीदार संगमर्मर का कार्य है। नलिकाओं (''पाइपों'') द्वारा लाया गया जल यहां एक खुली नाली द्वारा बहता रहता था, जिसके कारण भवन का वातावरण शीतल बना रहता था ठीक वातानुकूलित-वायु वाले आधुनिक भवनों की ही तरह। इन नालियों के बाद यह जल उद्यान की क्यारियों में जाता है। इस महल का एक विशेष आकर्षण है '''डोली महल''', जिसका आकार एक डोली की भांति है, जिनमें तब राजपूत महिलाएँ कहीं भी आना जाना किया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पहले एक भूल-भूलैया भी बनी है, जहाँ महाराजा अपनी रानियों और पटरानियों के संग हंसी-ठिठोली करते व आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे। राजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब वे युद्ध से लौटकर आते थे तो सभी रानियों में सबसे पहले उनसे मिलने की होड़ लगा करती थी। ऐसे में राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में घुस जाया करते थे व इधर-उधर घूमते थे और जो रानी उन्हें सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।<ref name="अभिव्यक्ति" />
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==संरक्षण==
राजस्थान के छः दुर्ग, आमेर, [[चित्तौड़गढ़ दुर्ग|चित्तौड़ दुर्ग]], [[गागरौन दुर्ग]], [[जैसलमेर दुर्ग]], [[कुम्भलगढ़ दुर्ग]] एवं [[रणथम्भोर दुर्ग]] को यूनेस्को विश्वदाय समिति ने फ्नोम पेन में जून २०१३ में आयोजित ३७वें सत्र की बैठक में [[यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल]] सूची में सम्मिलित किया था। इन्हें सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी आंका गया एवं राजपूत पर्वतीय वास्तुकला में श्रेणीगत किया गया। <ref>{{cite news|title=दुर्गों की विरासत
आमेर का कस्बा इस दुर्ग एवं महल का अभिन्न एवं अपरिहार्य अंग है तथा इसका प्रवेशद्वार भी है। यह कस्बा अब एक धरोहर स्थल बन गया है तथा इसकी अर्थ-व्यवस्था अधिकांश रूप से यहाँ आने वाले बड़ी संख्या के पर्यटकों (लगभग ४००० से ५००० प्रतिदिन, सर्वोच्च पर्यटक काल में) पर निर्भर रहती है।
आमेर विकास एवं प्रबन्धन प्राधिकरण (''आमेर डवलपमेण्ट एण्ड मैनेजमेण्ट अथॉरिटी'' (एडीएमए)) द्वारा आमेर महल एवं परिसर में ४० करोड़ रुपये ( ८.८८ मिलियन [[अमेरिकी डॉलर|अमरीकी डॉलर]]) का व्यव संरक्षण एवं विकास कार्यों में किया गया है। हालांकि इन संरक्षण एवं पुनरोद्धार कार्यों को प्राचीन संरचनाओं की ऐतिहासिकता और स्थापत्य सुविधाओं को बनाए रखने के लिए उनकी उपयोगिता के संबंध में गहन वाद-विवादों, चर्चाओं एवं विरोधों का सामना करना पड़ा है। एक अन्य मुद्दा इस स्मारक के व्यावसायीकरण संबंधी भी उठा है।<ref>{{Cite news|url=https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Amber-Palace-rennovation-Tampering-with-history/articleshow/3928204.cms|title= आमेर महल पुनरोद्धार: इतिहास से छेड़छाड़? [Amer Palace renovation: Tampering with history?]| language= अंग्रेज़ी|accessdate= १९ अप्रैल २०११|publisher=[[टाइम्स ऑफ़ इण्डिया]]|date=
एक फ़िल्म शूटिंग करते हुए एक बड़ी फिल्म निर्माण कंपनी से एक ५०० वर्ष पुराना झरोखा गिर गया तथा चाँद महल की पुरानी चूनेपत्थर की छत को भी क्षति पहुंची है। कंपनी ने अपने सेट्स खड़े करने हेतु यहाँ छेद ड्रिल किये तथा जलेब चौक पर खूब रेत भी फ़ैलायी और इस तरह राजस्थान स्मारक एवं पुरातात्त्विक स्थल एवं एन्टीक अधिनियम (१९६१) की उपेक्षा एवं उल्लंघन किया था।<ref name= High>{{Cite news|url=http://timesofindia.indiatimes.com/Cities/Film-crew-drilled-holes-into-historic-Amer/rssarticleshow/4134002.cms|title= फ़िल्म दल ने आमेर में ड्रिल किये [ Film crew drilled holes in Amer]|accessdate= १९ अप्रैल २०११|publisher=[[टाइम्स ऑफ़ इण्डिया]]| language= अंग्रेज़ी|date=१६ फ़रवरी २००९}}</ref>
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===पशुओं का शोषण ===
कई समूहों एवं संस्थाओं ने हाथियों पर चढ़कर आमेर दुर्ग तक की सवारी को हाथियों पर अत्याचार के रूप में देखा है और इस पर चिन्ता जतायी है। उनका मानना है कि ये अमानवीय है।<ref>[http://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/Amber-Fort-centre-for-elephant-trafficking-Welfare-board/articleshow/45559191.cms ''Amber Fort centre for elephant trafficking: Welfare board''
== विश्व धरोहर घोषणा ==
राजस्थान सरकार ने जनवरी २०११ को राजस्थान के कुछ किलों को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए प्रस्ताव भेजा था। उसके बाद यूनेस्को टीम की आकलन समिति के दो प्रतिनिधि जयपुर आए और एएसआई व राज्य सरकार के अघिकारियों के साथ बैठक की। इन सबके पश्चात मई २०१३ में इसे विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया एवं इसकी औपचारिक घोषणा २१ जून २०१३ को की गई।<ref>[https://hi.pinkcity.com/2013/06/22/6-fortification-world-heritage-of-rajasthan/ राजस्थान के 6 दुर्ग विश्व विरासत] - पिंक सिटी समाचार पत्र | अभिगमन तिथि: १२ मार्च २०१८</ref><ref>[http://www.jagran.com/news/national-six-rajasthan-hill-forts-on-world-heritage-list-10376266.html राजस्थान के छह किले एक साथ विश्व धरोहर की सूची में] - [[दैनिक जागरण|जागरण]] समाचार | अभिगमन तिथि: १२ मार्च २०१८</ref><ref>{{cite news|last1=सिंह|first1=महिम प्रताप|title=यूनेस्को ने राजस्थान के ६ दुर्गों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया [Unesco declares 6 Rajasthan forts World Heritage Sites]|url=http://www.thehindu.com/news/national/other-states/unesco-declares-6-rajasthan-forts-world-heritage-sites/article4838107.ece|accessdate=१ अप्रैल २०१५|publisher=[[द हिन्दू]]
वर्ष २०११-१३ की अवधि में स्मारक एवं दुर्गों तथा किलों पर कार्यरत अंतरराष्ट्रीय परिषद (''इन्टरनेश्नल काउन्सिल ऑन मॉन्युमेण्ट्स एण्ड फ़ोर्ट्स'', ICOMOS) ने कई अभियानों के अन्तर्गत इन दुर्गों का निरीक्षण किया एवं इनके नामांकन से सम्बन्धित कई अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श किये। अंतरराष्ट्रीय परिषद की रिपोर्ट में इन दुर्गों की इस श्रृंखला का सार्वभौमिक महत्व अतुलनीय बताया गया है। राजस्थान राज्य के इन ६ विशालकाय और वैभवशाली पहाड़ी किलों के रूप में ८वीं से १८वीं शताब्दी की राजपूत रियासतों (राजपूताना शैली के वास्तुशिल्प) की झलक मिलती है - ऐसा इस रिपोर्ट में बताया गया है। वर्ष २०१० में जंतर-मंतर को भी विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था।<ref>
{{cite web |url=http://www.khaskhabar.com/hindi-news/National-rajasthan-news-select-6-forts-of-rajasthan-in-the-world-heritage-2256093.html
|title= विश्व धरोहर में राजस्थान के 6 किलों का चयन
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पंक्ति 190:
==प्रचलित चलचित्रों में दृश्य ==
आमेर दुर्ग बहुत सी हिन्दी चलचित्र (बॉलीवुड) जगत की फिल्मों में दिखाया गया है। इसका ताजा उदाहरण है फ़िल्म [[बाजीराव मस्तानी (फ़िल्म)|बाजीराव मस्तानी]] जिसमें
इसके अलावा [[मुगल-ए-आज़म (1960 फ़िल्म)|मुगले आज़म]], [[जोधा अकबर (2008 फ़िल्म)|जोधा अकबर]], [[शुद्ध देसी रोमांस]], [[भूल भुलैया (2007 फ़िल्म)|भूल भुलैया]]<ref>{{cite web|first1=नूपुर|last1=अग्रवाल|title=19-hindi-movies-to-watch-before-you-visit-jaipur|trans_title=जयपुर भ्रमण से पूर्व देखने योग्य १९ फिल्में|url=https://theculturetrip.com/asia/india/articles/19-hindi-movies-to-watch-before-you-visit-jaipur/|website=१४ दिसम्बर २०१६|publisher=द कल्चर ट्रिप|accessdate=1 दिसम्बर 2017}}</ref><ref>{{cite web|title=Amber Fort from eye of Bollywood|trans_title=आमेर दुर्ग - बॉलीवुड की दृष्टि में|url=https://jaipur.org/2016/08/05/amber-fort-from-eye-of-bollywood/|website=जयपुर.ऑर्ग|publisher=पिंक सिटी|accessdate=1 दिसम्बर 2017}}</ref> आदि कई [[हिन्दी सिनेमा|बॉलीवुड]] एवं कुछ [[हॉलीवुड|हॉलीवुड फ़िल्मों]] जैसे [[w:North West Frontier (film)|''नार्थ वेस्ट फ़्रन्टियर'']]<ref>{{cite web |url=https://jkroaming.com/2014/04/06/north-west-frontier/comment-page-1/
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===सड़क मार्ग===
जयपुर शहर रेल, बस व वायु सेवा द्वारा देश के प्रमुख नगरों से भली भांति जुड़ा हुआ है। यहां [[राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम]] की बसें दिल्ली, आगरा, अहमदाबाद,
{{cite web
|url=https://hindi.nativeplanet.com/travel-guide/the-pink-city-rajasthan/articlecontent-pf5369-000586.html
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===वायु मार्ग===
[[चित्र:Jaipur Airport.JPG|अंगूठाकार|जयपुर अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र का मुख्य द्वार]]
जयपुर शहर देश के बड़े नगरों से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
|title= जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट|accessmonthday= |accessdate= |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= 6 मार्च 2013|year= |month= |format= |work= aimactimes|publisher= पिंकसिटी|pages= |language=
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==चित्र दीर्घा==
{{Panorama
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आमेर दुर्ग का एक खिली सुबह का दृश्य|dir
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}}
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कांकिल राय अपने पिता दूलहराय की शिक्षा मानकर माता जमुवाय का प्रतिदिन भजन- पूजन करने लगे।उन दिनों सूंसावत मीनो के राव भत्तो का आमेर प्रांत पर शासन था।उसने आसपास के सारे मीना समुदाय को इकट्ठा किया।
{{cquote|होय संगठित कीना धावा। कछु कांकिल की भूमि दबावा।।<br>:तब कांकिल निज बुला समाजा। करी मंत्रणा रण के काजा।।|20px||जमुवाय गाथा}}
राव भत्तो के नेतृत्व में सारा मीना समाज संगठित हो गया तथा कांकिल राय के राज्य का कुछ
; सन्दर्भ ग्रन्थ
{{कालम|2}}
# [[जेम्स टॉड|कर्नल जेम्स टॉड]]: ''ऐनल्ज एण्ड एण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान'', भाग ३, पृ. १३२८ {{अंग्रेज़ी}}
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