"विदिशा": अवतरणों में अंतर

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इस नगर का वर्णन कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ [[मेघदूत]] में किया है। अनके अनुसार यहाँ पर दशार्ण देश की राजधानी थी। प्रवासी यक्ष अपने संदेशवाहक मेघ से कहता है- अरे मित्र! सुन! जब तू दशार्ण देश पहुँचेगा, तो तुझे ऐसी फुलवारियाँ मिलेंगी, जो फूले हुये केवड़ों के कारण उजली दिखायी देंगी। गाँव के मन्दिर कौओं आदि पक्षियों के घोंसलों से भरे मिलेंगे। वहाँ के जंगल पकी हुई काली जामुनों से लदे मिलेंगे और हंस भी वहाँ कुछ दिनों के लिये आ बसे होगें।
हे मित्र! जब तू इस दशार्ण देश की राजधानी विदिशा में पहुँचेगा, तो तुझे वहाँ विलास की सब सामग्री मिल जायेगी। जब तू वहाँ सुहावनी और मनभावनी नाचती हुई लहरों वाली वेत्रवती (बेतवा) के तट पर गर्जन करके उसका मीठा जल पीयेगा, तब तुझे ऐसा लगेगा कि मानो तू किसी कटीली भौहों वाली कामिनी के ओठों का रस पी रहा है।
वहाँ तू पहुँच कर थकावट मिटाने के लिये 'नीच' नाम की पहाड़ी पर उतर जाना। वहाँ पर फूले हुय कदम्ब के वृक्षों को देखकर ऐसा जान पड़ेगा कि मानों तुझसे भेंट करने के कारण उसके रोम-रोम फरफरा उठे हों। उस पहाड़ी की गुफ़ाओंगुफाओं से उन सुगन्धित पदार्थों की गन्ध निकल रही होगी, जिन्हें वहाँ के रसिक वेश्याओं के साथ रति करते समय काम में लाते हैं। इससे तुझे यह भी पता चल जायेगा कि वहाँ के नागरिक कितनी स्वतंत्रता से जवानी का आनन्द लेते हैं। कालिदास के इस वर्णन से लगता है कि वे इस नगर में रह चुके थे और इस कारण वहाँ के प्रधान स्थानों तथा पुरवासियों के सामाजिक जीवन से परिचित थे।
 
=== मालविकाग्निमित्रम् में ===