"विद्या": अवतरणों में अंतर

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: ''( श्रुति, स्मृति, सांख्य, योग, नीति, वैशेषिक, गंधर्व (संगीत), गणित, धनुर्वेद, पुराण, चिकित्सा, इतिहास, ज्योतिष, माया (जादू), छन्द, हेतुविद्या, मन्त्र (राजनय), और शब्द (व्याकरण) - ये अठारह शिल्प (विद्याएँ) हैं।)<ref>[http://www.anantaajournal.com/archives/2016/vol2issue3/PartA/2-3-1.1.pdf A Note on PāliNītiLiterature]</ref>
 
भारत के विद्याविद् आचार्यो ने विद्या के चार विभाग बताए हैं- [[आन्वीक्षिकी]], त्रयी, वार्ता और [[दण्डनीति]]। आन्वीक्षिकी का अर्थ है- प्रत्यक्षदृष्ट तथा शास्त्रश्रुत विषयों के तात्त्विक रूप को अवगत करानेवाली विद्या। इसी विद्या का नाम है- न्यायविद्या या [[न्यायशास्त्र]] ; जैसा कि [[वात्स्यायन]] ने कहा है :
 
:'' प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्यान्वीक्षामन्वीक्षा, तया प्रवत्र्तत इत्यान्वीक्षिकीन्यायविद्यान्यायशास्त्रम् (न्यायभाष्य 1 सूत्र)
 
आन्वीक्षिकी में स्वयं न्याय का तथा न्यायप्रणाली से अन्य विषयों का अध्ययन होने के कारण उसे न्यायविद्या या न्यायशास्त्र कहा जाता है। आन्वीक्षिकी विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। वात्स्यायन ने अर्थशास्त्राचार्य [[चाणक्य]] के निम्नलिखित वचन को उद्धृत कर आन्वीक्षिकी को समस्त विद्याओं का प्रकाशक, संपूर्ण कर्मों का साधक और समग्र धर्मों का आधार बताया है-
 
:'' प्रदीप: सर्वशास्त्राणामुपाय: सर्वकर्मणाम्। आश्रय: सर्वधर्माणां सेयमान्वीक्षिकी मता। (न्या.भा. 1 सूत्र)
 
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