"दिगम्बर": अवतरणों में अंतर

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{{जैन धर्म}}
[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|thumb|thumb|गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में)]]
'''दिगम्बर''' [[जैन धर्म]] के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। ''दिगम्बर= दिक् + अम्बर'' अर्थात दिशायें हि जिनके वस्त्र है। दिगम्बर मुनि निर्वस्त्र होते हैं, पड्गाहन करने पर एक बार खडे होकर हाथ में ही आहार लेते है मात्र पिच्छी तथा कमण्डल रखते है एवं पैदल चलते है।
 
== परिचय ==
[[File:Pichi kamandal shastra.jpeg|thumb|अहिंसा के ३ उपकरण: पिछी, कमंडल और शास्त्र]]
 
वर्तमान में जैन समाज में दो मुख्य संप्रदाय हैं, एक दिगंबर और दूसरा श्वेतांबर। दिगंबर का अर्थ होता है दिशा ही जिसका अंबर अर्थात् वस्त्र है। दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी मोक्ष प्राप्त करने के लिए नग्नतत्व को मुख्य मानते हैं और स्त्रीमुक्ति का निषेध करते हैं। श्वेतांबरों के ४५ ग्रंथों को भी वे स्वीकार नहीं करते। उनका कथन है कि जिन भगवान द्वारा भाषित [[आगम (जैन)|आगम ग्रंथों]] का बहुभाग काल-दोष से नष्ट हो गया हैं। [[तीर्थंकर महावीर]] के पश्चात् [[इंद्रभूति गौतम]], सुधर्मा और जंबूस्वामी तक जैनसंघ में विशेष मतभेद के चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं होते। परतु जंबूस्वामी के पश्चात् दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय की आचार्य परंपराएँ भिन्न पड़ जाती हैं।
 
दिगंबरों के अनुसार विष्णु, नंदी, अपराजित गोवर्धन और भद्रबाहु नामक पाँच [[श्रुतकेवली]] हुए, जबकि श्वेतांबर परंपरा में प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतविजय और भद्रवाहु श्रुतकेवली माने गए हैं। भद्रबाहु दोनों संघों में सामान्य हैं, इससे मालूम होता है कि भद्रबाहू के समय तक जैन संघ में दिगंबर श्वेतांबर का मतभेद नहीं हुआ था। श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार महावीर निर्वाण के ६०९ वर्ष बाद (ईसवी सन् ८३) रथवीपुर में [[आचार्य शिवभूति|शिवभूति]] द्वारा बोटिक मत (दिगंबर) की स्थापना हुई। [[कोंडिन्य]] और [[कोट्टिवीर]] शिवभूति के दो प्रधान शिष्य थे।
 
दिगंबर मान्यता के अनुसार [[उज्जैन]] में चंद्रगुप्त के राज्यकाल में आचार्य [[भद्रबाहु]] की दुष्काल संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उनके शिष्य [[विशाखाचार्य]] अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गए, कुछ साधु सिंधु में विहार कर गए। जब साधु उज्जैनी लौटकर आए तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस समय संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढाँकने के लिए साधुओं को अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया; आगे चलकर कुछ साधुओं ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया, ये श्वेतांबर कहलाए। [[मथुरा]] के जैन [[शिलालेख|शिलालेखों]] से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास एक दूसरे से पृथक् हुए। [[गुजरात]] और [[काठियावाड़]] में अधिकतर श्वेतांबर तथा दक्षिण भारत और उत्तरप्रदेश में अधिकतर दिगंबर पाए जाते हैं।
[[चित्र:Acharya KundaKunda.jpg|thumb|प्रमुख दिगंबराचार्या [[कुन्दकुन्द स्वामी]] की प्रतिमा (कर्नाटक)]]
 
दिगंबर मान्यता के अनुसार [[उज्जैन]] में चंद्रगुप्त के राज्यकाल में आचार्य [[भद्रबाहु]] की दुष्काल संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उनके शिष्य [[विशाखाचार्य]] अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गए, कुछ साधु सिंधु में विहार कर गए। जब साधु उज्जैनी लौटकर आए तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस समय संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढाँकने के लिए साधुओं को अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया; आगे चलकर कुछ साधुओं ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया, ये श्वेतांबर कहलाए। [[मथुरा]] के जैन [[शिलालेख|शिलालेखों]] से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास एक दूसरे से पृथक् हुए। [[गुजरात]] और [[काठियावाड़]] में अधिकतर श्वेतांबर तथा दक्षिण भारत और उत्तरप्रदेश में अधिकतर दिगंबर पाए जाते हैं।
== अट्ठाईस मूलगुण ==
 
== दिगम्बर साधु==
{{मुख्य|दिगम्बर साधु}}
== =अट्ठाईस मूलगुण ===
२८ मूलगुणों का पालन प्रत्येक जैन मुनि को करना होता है। यह है:{{sfn|प्रमाणसागर|२००८|p=१८९}}
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