"समाजवाद": अवतरणों में अंतर

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'''समाजवाद''' (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक [[दर्शन]] है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को [[पूँजीवाद]] या [[मुक्त बाजार]] के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है।
 
ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी [[हेराल्ड लास्की|हैरॉल्ड लॉस्की]] ने कभी समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में लॉस्की के इस चित्रण को काफी सीमा तक रूपायित करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को [[अर्थव्यवस्था]] के नियमन द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने का मंत्र देती है। [[भारत]] में समाजवाद की एक अलग किस्म के सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। [[राममनोहर लोहिया]], [[जय प्रकाश नारायण|जय प्रकाश नारायण,]] और [[नरेन्द्र देव]], कर्पूरी ठाकुर, रामसेवक यादव और मधुलिमये के राजनीतिक चिंतन और व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की संज्ञा दी जाती है।
 
समाजवाद [[अंग्रेजी]] और [[फ्रांसीसी]] शब्द 'सोशलिज्म' का [[हिंदी]] रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग [[व्यक्तिवाद]] के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे।