"ब्रह्माण्ड पुराण": अवतरणों में अंतर

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'''ब्रह्माण्डपुराण''', अट्ठारह महापुराणों में से एक है। मध्यकालीन भारतीय साहित्य में इस पुराण को 'वायवीय पुराण' या 'वायवीय ब्रह्माण्ड' कहा गया है। [[ब्रह्माण्ड]] का वर्णन करनेवाले [[वायु]] ने [[व्यास]] जी को दिये हुए इस बारह हजार श्लोकों के [[पुराण]] में विश्व का पौराणिक भूगोल, विश्व खगोल, अध्यात्मरामायण आदि विषय हैं। हिंदू संस्कृति की स्वाभाविक व स्पष्ट रूपरेखा वैदिक साहित्य में सर्वाधिक पुराणों से ही मिलती हे, यद्यपि यह श्रेय वेदों को दिया जाता है। कहा जाता है कि वास्तव में वेद भी अपनी विषय व्याख्या के लिये पुराणों पर ही आश्रित हैं।
 
== विस्तार ==
यह [[पुराण]] भविष्य कल्पों से युक्त और बारह हजार श्लोकों सेवाला युक्त है,है। इसके चार पद है, पहला प्रक्रियापाद दूसरा अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादों को 'पूर्व भाग' कहा जाता है, तृतीय पाद ही 'मध्यम भाग' है, और चतुर्थ पाद को उत्तम'उत्तर भाग' कहा गया है। पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। इस पुराण काके प्रतिपाद्य विषय को प्राचीन भारतीय ऋषि [[जावा द्वीप]] (वर्तमान में इण्डोनेशिया) लेकर गए थे। इस पुराण का [[अनुवाद]] वहां के प्राचीन [[कवि भाषा|कवि-भाषा]] में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।
 
== कथा ==
'''पूर्व भाग''' के प्रक्रिया पाद में पहले कर्तव्य का उपदेश नैमिषा आख्यान हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति और लोकरचना इत्यादि विषय वर्णित है, द्वितीयभाग में कल्प तथा मन्वन्तर का वर्णन है, तत्पश्चात लोकज्ञान मानुषी-सृष्टि-कथन रुद्रसृष्टि-वर्णन महादेव विभूति ऋषि सर्ग अग्निविजय कालसदभाव-वर्णन प्रियवत वंश का वर्णन पृथ्वी का दैर्घ्य और विस्तार भारतवर्ष का वर्णन फ़िरफिर अन्य वर्षों का वर्णन जम्बू आदि सात द्वीपों का परिचय नीचे के पातालों का वर्णन भूर्भुव:भूर्भुवः आदि ऊपर के लोकों का वर्णन ग्रहों की गति का विश्लेषण आदित्यव्यूह का कथन देवग्रहानुकीर्तन भगवान शिव के नीलकण्ठ नाम पडने का कथन महादेवजी का वैभव अमावस्या का वर्णन युगत्वनिरूपण यज्ञप्रवर्त्तन अन्तिम दो युगों का कार्य युग के अनुसार प्रजा का लक्षण ऋषिप्रवर वर्णन वेदव्यसन वर्णन स्वायम्भुव मनवन्तर का निरूपण शेषमनवन्तर का कथन पृथ्वीदोहन चाक्षुषु और वर्तमान मनवन्तर के सर्ग का वर्णन है।

'''मध्यभाग '''के सप्तऋषियों का वर्णन प्रजापति वंश का निरूपण उससे देवता आदि की उत्पत्ति इसके बाद विजय अभिलाषा और मरुद्गणों की उत्पत्ति का कथन है। कश्यप की संतानों का वर्णन ऋषिवंश निरूपण पितृकल्प का कथन श्राद्धकल्प का कथन वैवस्त मनु की उत्पत्ति उनकी सृष्टि मनुपुत्रों का वंश गान्धर्व निरूपण इक्ष्वाकु वंश का वर्णन रजिका अद्भुत चरित्र ययातिचरित[[ययाति]]चरित यदुवंशनिरूपण कार्तवीर्यार्जुन चरित परशुरामचरित वृष्णिवंश का वर्णन सगर की उत्पत्ति भार्गव का चरित्र कार्तवीर्यार्जुन समबन्धी कथा, भार्गव और्व की कथा शुक्राचार्यकृत इन्द्र का पवित्र स्तोत्र देवासुर संग्राम की कथा विष्णुमाहात्म्य बलिवंश निरूपण कलियुग में होने वाले राजाओं का चरित्र आदि लिखे गये है, है।

इसके बाद '''उत्तरभाग''' के चौथे उपसंहारपाद में वैवस्त मनवन्तर की कथा ज्यों की त्यों लिखी गयी है, जो कथा पहले संक्षेप में कही गयी है उसका यहां विस्तार से निरूपण किया गया है। भविष्य में होने वाले मनुओं[[मनु]]ओं की कथा भी कही गयी है, विपरीत कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों का विवरण भी लिखा गया है। इसके बाद शिवधाम का वर्णन है और सत्व आदि गुणों के सम्बन्ध से जीवों की त्रिविधि गति का निरूपण किया गया है। इसके बाद अन्वय तथा व्यातिरेकद्रिष्टि से अनिर्देश्य एवं अतर्क्य परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है।
 
== बाहरी कडियाँ ==