"भक्ति आन्दोलन": अवतरणों में अंतर
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कृष्ण के अनुयायियों ने 1585 ईसवी में हरिवंश के अंतर्गत राधा बल्लभी पंथ की स्थापना की। [[सूरदास]] ने [[ब्रजभाषा]] में ''सूर सरागर'' की रचना की, जो श्री कृष्ण के मोहक रूप तथा उनकी प्रेमिका राधा की कथाओं से परिपूर्ण है।
भक्ति आंदोलन के भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े । ऐसे समय मे जब भारतीय समाज जड़ हो गया था तब भक्ति आंदोलन के सुधारकों ने इश्मे नवप्राण फूंके।।
1- (व्यावहारिक धर्म) - मध्य काल मे जब मुस्लिम शासकों के अत्यसहर के कारण हिन्दू धर्म का पालन असंभव हो गया था। भक्ति आंदोलन ने नाम स्मरण मात्र को ही धर्म पालन का स्वरूप निर्धारित किया। इस प्रकार के व्यवहारिक धर्म मे मन्दिर, मूर्ति, पुरोहित, शास्त्रों की आवश्यकता नही थी।
2- समन्वय का दृष्टिकोण- भक्ति आंदोलन ने मुसलमानों को निकट लाने में सफलता प्राप्त की जिस से समन्वय के दृष्टिकोण का विकाश हुआ।
3-हिंदुयों में आशा लाना- भक्ति आंदोलन ने हिदुओं में आशा का संचार किया । उनकी अपने धर्म मे श्रद्धा गहरी हुई।
== भक्ति आन्दोलन की कुछ विशेषताएं ==
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