"भक्ति आन्दोलन": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में [[आलवार सन्त|आलवारों]] एवं [[नायनार|नायनारों]] से हुआ जो कालान्तर में (८०० ई से १७०० ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण [[दक्षिण एशिया]] में फैल गया।
भक्तिइस आंदोलनहिन्‍दू केक्रांतिकारी प्रमुखअभियान सुधारकके थेनेता -[[शंकराचार्य]] थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे। इस अभियान को [[चैतन्‍य महाप्रभु]], [[नामदेव]], [[तुकाराम]], [[जयदेव]] ने और अधिक मुखरता प्रदान की। इस अभियान की प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा।
 
भक्ति आंदोलन के नेता [[रामानंद]] ने [[राम]] को [[भगवान]] के रूप में लेकर इसे केन्द्रित किया। उनके बारे में बहुत कम जानकारी है, परन्‍तु ऐसा माना जाता है कि वे 15वीं शताब्‍दी के प्रथमार्ध में रहे। उन्‍होंने सिखाया कि भगवान राम सर्वोच्‍च भगवान हैं और केवल उनके प्रति प्रेम और समर्पण के माध्‍यम से तथा उनके पवित्र नाम को बार-बार उच्‍चारित करने से ही मुक्ति पाई जाती है।
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कृष्‍ण के अनुयायियों ने 1585 ईसवी में हरिवंश के अंतर्गत राधा बल्‍लभी पंथ की स्‍थापना की। [[सूरदास]] ने [[ब्रजभाषा]] में ''सूर सरागर'' की रचना की, जो श्री कृष्‍ण के मोहक रूप तथा उनकी प्रेमिका राधा की कथाओं से परिपूर्ण है।
 
== प्रभाव ==
भक्ति आंदोलन के भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े । ऐसे समय मे जब भारतीय समाज जड़ हो गया था तब भक्ति आंदोलन के सुधारकों ने इश्मे नवप्राण फूंके।।
* भक्ति आन्दोलन के द्वारा हिन्दू धर्म ने इस्लाम के प्रचार, जोर-जबरजस्ती एवं राजनैतिक हस्तक्षेप का कड़ा मुकाबला किया।
1- (व्यावहारिक धर्म) - मध्य काल मे जब मुस्लिम शासकों के अत्यसहर के कारण हिन्दू धर्म का पालन असंभव हो गया था। भक्ति आंदोलन ने नाम स्मरण मात्र को ही धर्म पालन का स्वरूप निर्धारित किया। इस प्रकार के व्यवहारिक धर्म मे मन्दिर, मूर्ति, पुरोहित, शास्त्रों की आवश्यकता नही थी।
* इसका इस्लाम पर भी प्रभाव पड़ा। ([[सूफीवाद]])
2- समन्वय का दृष्टिकोण- भक्ति आंदोलन ने मुसलमानों को निकट लाने में सफलता प्राप्त की जिस से समन्वय के दृष्टिकोण का विकाश हुआ।
3-हिंदुयों में आशा लाना- भक्ति आंदोलन ने हिदुओं में आशा का संचार किया । उनकी अपने धर्म मे श्रद्धा गहरी हुई।
 
== भक्ति आन्दोलन की कुछ विशेषताएं ==
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* '''[[हजारी प्रसाद द्विवेदी|आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]]''' ने सर्वप्रथम इस मत का खंडन किया तथा प्राचीनकाल से इस भक्ति प्रवाह का सम्बन्ध स्थापित करते हुए अपने मत को स्पष्टत: प्रतिपादित किया। उन्होंने लिखा - "यह बात अत्यन्त उपहासास्पद है कि जब मुसलमान लोग उत्तर भारत के [[मन्दिर]] तोड़ रहे थे तो उसी समय अपेक्षाकृत निरापद दक्षिण में भक्त लोगों ने भगवान की शरणागति की प्रार्थना की। मुसलमानों के अत्याचार से यदि भक्ति की धारा को उमड़ना था तो पहले उसे [[सिन्ध]] में, फिर उसे उत्तरभारत में, प्रकट होना चाहिए था, पर हुई वह दक्षिण में।"
 
== भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त- ==
 
* [[ शंकराचार्य]] (788 ई से 820 ई)
* [[नारद]]
* [[आलवार सन्त|अलवर]] (लगभग २री शताब्दी से ८वीं शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
* [[नयनार]] (लगभग ५वीं शताब्दी से १०वी शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
* [[आदि शंकराचार्य]] (788 ई से 820 ई)
* [[रामानुज]] (1017 - 1137)
* [[बासव]] (१२वीं शती)
[[निम्बार्क]] मथुरा में एक आश्रम स्थापित किया
* [[माध्वाचार्य]] (1238 - 1317)
* [[नामदेव]] (1270 - 1309 ; महाराष्ट्र)
* [[एकनाथ]] - [[गीता]] पर भाष्य लिखा ; [[विठोबा]] के भक्त