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'''परमार''' या '''पंवार वंश''' [[मध्यकालीन भारत]] का एक अग्निवंशी
आबु चंद्रावती और मालवा उज्जैन ,धार परमार राजवंश का प्रमुख राज्य क्षेत्र रहा है। ये ८वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।
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== परिचय ==
परमार पँवार एक राजवंश का नाम है, जो मध्ययुग के प्रारंभिक काल में महत्वपूर्ण हुआ। चारण कथाओं में इसका उल्लेख राजपूत जाति के एक गोत्र रूप में मिलता है। परमार सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल ने अपनी पुस्तक 'नवसाहसांकचरित' में एक कथा का वर्णन किया है। ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये भाबू पर्वत के अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया जिनके पूर्वज अग्निवंश के क्षत्रिय थे।। इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया, जो इस वंश का संस्थापक हुआ और उसी के नाम पर वंश का नाम पड़ा। परमार के अभिलेखों में बाद को भी इस कहानी का पुनरुल्लेख हुआ है। इससे कुछ लोग यों समझने लगे कि परमारों का मूल निवासस्थान आबू पर्वत पर था, जहाँ से वे पड़ोस के देशों में जा जाकर बस गए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे।
परमार परिवार की मुख्य शाखा आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से
राजा भोज की मृत्यु के पश्चात् चोलुक्य कर्ण और कर्णाटों ने मालव को जीत लिया, किंतु भोज के एक संबंधी उदयादित्य ने शत्रुओं को बुरी तरह पराजित करके अपना प्रभुत्व पुन: स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उदयादित्य ने मध्यप्रदेश के उदयपुर नामक स्थान में नीलकंठ शिव के विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। उदयादित्य का पुत्र जगद्देव बहुत प्रतिष्ठित सम्राट् था। वह मृत्यु के बहुत काल बाद तक पश्चिमी भारत के लोगों में अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के लिय प्रसिद्ध रहा। मालव में परमार वंश के अंत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1305 ई. में कर दिया गया।
परमार वंश की एक शाखा आबू पर्वत पर चंद्रावती को राजधानी बनाकर, 10वीं शताब्दी के अंत में 13वीं शताब्दी के अंत तक राज्य करती रही। इस वंश की दूसरी शाखा वगद (वर्तमान बाँसवाड़ा) और डूंगरपुर रियासतों में उट्ठतुक बाँसवाड़ा राज्य में वर्त्तमान अर्थुना की राजधानी पर 10वीं शताब्दी के मध्यकाल से 12वीं शताब्दी के मध्यकाल तक शासन करती रही। वंश की दो शाखाएँ और ज्ञात हैं। एक ने जालोर में, दूसरी ने बिनमाल में 10वीं शताब्दी के अंतिम भाग से 12वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक राज्य किया। वर्तमान में परमार वंश की एक शाखा उज्जैन के गांव नंदवासला,खाताखेडी तथा नरसिंहगढ एवं इन्दौर के गांव बेंगन्दा में निवास करते हैं।धारविया परमार तलावली में भी निवास करते
== राजा ==
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