"मराठी साहित्य": अवतरणों में अंतर

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→‎ज्ञानदेव तथा नामदेव: यह ज्ञानेश्वर नहीं है
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ऐतिहासिक अनुसंधान करनेवाले अनेक विद्वानों ने यह मान लिया है कि [[मुकुंदराज]] मराठी साहित्य के आदि कवि हैं। इनका समय 1128 से 1200 तक माना जाता है। मुकुंदराज के दो ग्रंथ "विवेकसिंधु" और "परमामृत" है जो पूर्ण आध्यात्मिक विषय पर हैं। मुकुंदराज के निवासस्थान के संबंध में विद्वानों का एक मत नहीं है, फिर भी नीड जिले के अंबे जोगाई नामक स्थान पर बनी इनकी समाधि से वे मराठवाडा के निवासी प्रतीत होते हैं। वे [[नाथ सम्प्रदाय|नाथपंथीय]] थे। उनके साहित्य से इस पंथ के संकेत प्राप्त होते हैं।
 
=== ज्ञानदेव तथा नामदेव ===
[[चित्र:Jnandev.jpg|right|thumb|200px|सन्त ज्ञानेश्वर]]
मराठी भाषा के अद्वितीय साहित्यभांडार का निर्माण करनेवाले [[सन्त ज्ञानेश्वर|ज्ञानदेव]] को ही मराठी का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। 15 वर्ष की अवस्था में लिखी गई उनकी रचना [[ज्ञानेश्वरी]] अत्यंत प्रसिद्ध है। उनके ग्रंथ अमृतानुभव तथा चांगदेव पासष्टी, वेदांत चर्चा से ओतप्रोत हैं। ज्ञानदेव का श्रेष्ठत्व उनके अलौकिक ग्रंथनिर्माण के समान ही उनकी भक्तिपंथ की प्रेरणा में भी विद्यमान है। इस कार्य में उन्हें अपने समकालीन [[संत नामदेव]] की अमूल्य सहायता प्राप्त हुई है। ज्ञान और भक्ति के साकार स्वरूप इन दोनों संतों ने महाराष्ट्र के पारमार्थिक जीवन की नई परंपरा को सुदृढ़ स्थान प्राप्त करा दिया। इनके भक्तिप्रधान साहित्य तथा दिव्य जीवन के कारण महाराष्ट्र के सभी वर्गों के समाज में भगवद्भक्तों का पारमार्थिक लोकराज्य स्थापित होने का आभास मिला। चोखा मेला, गोरा कुम्हार, नरहरि सोनार इत्यादि संत इसी परंपरा के हैं।